Rana Sanga : अपनों ने दगा दिया, वरना बाबर में कहां दम था



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सपा सांसद रामजी सुमन के राणा सांगा (Ramji Lal Suman on Rana Sanga) पर दिए बयान पर बवेला मचा हुआ है। रामजी सुमन के मुताबिक, राणा सांगा ने ही इब्राहिम लोदी (Rana Sanga and Ibrahim Lodhi) को हराने के लिए बाबर को बुलाया था। अगर इतिहास देखें तो पता चलता है कि हिंदुस्तान में कदम जमाने की कोशिश कर रहे बाबर को असली टक्कर राणा सांगा ने ही दी थी।

बाबर (Babur) के पहले जो भी आक्रांता भारत आए थे, उन्होंने देश को लूटा, मारकाट की और चले गए। लेकिन बाबर ने फैसला किया कि वह हिंदुस्तान में मुगल सल्तनत की नींव रखेगा। इसमें सबसे बड़ा रोड़ा राणा सांगा ही थे।

राणा सांगा (Rana Sanga) उस समय मेवाड़ के सबसे शक्तिशाली शासक थे और उनकी सेनाएं उत्तरी और पश्चिमी भारत में फैली हुई थीं। उनकी शक्ति सिर्फ राजस्थान तक सीमित नहीं थी, बल्कि उनका प्रभाव गुजरात, मालवा, दिल्ली और आगरा तक था। उनके नेतृत्व में मारवाड़, अंबर, ग्वालियर, अजमेर और चंदेरी जैसे राज्यों के राजपूत शासक एकजुट थे।

सांगा के रहते बाबर का सपना कभी पूरा नहीं हो सकता था। ऐसे में उसने दूसरे जागीरदारों और शासकों को मिलाना शुरू किया। Maharana Sanga; the Hindupat, the last great leader of the Rajput race किताब बताती है कि बाबर ने मेवात के हसन खान के बेटे नाहर खान को पानीपत की लड़ाई के दौरान कैद कर लिया था। 

हसन को खुश करने के लिए बाबर ने नाहर को अच्छे कपड़ों में सम्मान के साथ वापस भेजा। हालांकि हसन ने तय किया कि वह राणा सांगा का साथ देंगे। उन्होंने बाबर का प्रस्ताव ठुकरा दिया और 10 हजार घुड़सवारों के साथ राणा सांगा की सेना से जा मिले।

राणा सांगा से सुलह की कोशिश (Babur afraid of Rana Sanga)

बाबर 11 फरवरी 1527 को आगरा से बाहर निकला। हालांकि कुछ दिनों तक चलने के बाद ही उसने डेरा डाल दिया और सेना को एकजुट करने लगा। उधर, राणा सांगा (Rana Sanga) ने भी बाबर के खिलाफ एक विशाल गठबंधन तैयार किया। इस गठबंधन में 200,000 से अधिक सैनिक थे, जिनमें राजपूतों के अलावा अफगान सरदार महमूद लोदी और मेवाती सरदार हसन खान मेवाती भी शामिल थे।

इतनी विशाल सेना के सामने बाबर के सैनिक भयभीत थे। बाबर ने जिन अफगान सरदारों को अपने साथ मिलाया था, उनमें से कई राजपूतों के खिलाफ लड़ चुके थे और बुरी तरह हारे थे। उन्हें पता था कि हिंदुस्तान से लेकर अफगानिस्तान तक राजपूतों के शौर्य का सामना कोई नहीं कर सकता।

ऐसे में बाबर ने धर्म का सहारा लिया। उसने शराब छोड़ने की सार्वजनिक घोषणा की और युद्ध को 'जिहाद' करार दिया। उसने शराब के प्याले तोड़ दिए और सैनिकों से भी कहा कि ऐसा ही करें। अपने सैनिकों को यह विश्वास दिलाया कि यह लड़ाई केवल सत्ता के लिए नहीं, बल्कि उनके अस्तित्व और भविष्य की लड़ाई है।

खून से लाल हुई खानवा की धरती (Battle of Khanwa)

16 मार्च 1527 को खानवा के मैदान में यह ऐतिहासिक युद्ध शुरू हुआ। राणा सांगा (Rana Sanga) की सेना पूरी तरह युद्ध के लिए तैयार थी। उसने अपनी सेना को सीधी टक्कर देने की पारंपरिक राजपूती रणनीति के अनुसार तैनात किया। दूसरी ओर, बाबर ने एक नई और आधुनिक रणनीति अपनाई। उसने अपनी सेना को तोपों, बंदूकों और घुड़सवारों की तेज मूवमेंट पर केंद्रित किया।

राजपूत योद्धाओं ने अपने घोड़ों पर सवार होकर बाबर की सेना पर सीधा हमला बोला, लेकिन उन्हें यह अंदाजा नहीं था कि बाबर ने अपने तोपखाने को विशेष तरीके से तैनात कर रखा था। जैसे ही राजपूत घुड़सवार सेना आगे बढ़ी, बाबर की तोपों से गोलियां दागी गईं। तेज धमाकों और गोलियों की बौछार से राजपूत सेना में हलचल मच गई। घोड़े डरकर इधर-उधर भागने लगे, जिससे राजपूतों की युद्ध संरचना बिखर गई।

बाबर ने युद्ध में तुर्क और मंगोल रणनीति अपनाई। उसके कुछ सैनिकों ने राणा सांगा (Rana Sanga) पर पीछे से हमला किया। हिंदुस्तान में तब इसके बारे में कोई सोचता भी नहीं था कि अगर सेनाएं आमने-सामने हैं, तो कोई पीछे से आकर वार कर दे।

राणा सांगा के साथ सिलहदी का विश्वासघात (Rana Sanga was betrayed)

युद्ध के दौरान एक और घटना घटी, जिसने बाबर की जीत को सुनिश्चित कर दिया। राणा सांगा के सेनापति सिलहदी तोमर, जो पहले उनके विश्वसनीय सहयोगी थे, अचानक युद्ध के बीच में बाबर के पक्ष में आ गए। इससे राजपूत सेना पूरी तरह टूट गई।

राणा सांगा (Rana Sanga) इस युद्ध में गंभीर रूप से घायल हो गए। जब उनके सैनिकों ने देखा कि उनका सेनानायक युद्ध में भाग नहीं ले सकता, तो उनका मनोबल गिर गया। हालांकि, राणा सांगा के सेनापति अज्जा झाला ने आखिरी समय तक संघर्ष किया और वीरगति को प्राप्त हुए।

अपनों ने दिया राणा सांगा को जहर (Death of Rana Sanga)

खानवा के युद्ध से बदन पर दर्जनों घाव लिए राणा सांगा (Rana Sanga) को अचेत अवस्था में कालपी लाया गया। जब उन्हें होश आया तो उन्होंने सौगंध ली कि वह बाबर और मुगलों को नेस्तनाबूद करके रहेंगे और तब तक पगड़ी धारण नहीं करेंगे।

लेकिन राणा सांगा के साथ फिर विश्वासघात हुआ। उनके ही किसी अपने ने 1528 में उन्हें जहर दे दिया। राणा सांगा हमेशा के लिए सो गए। एक हाथ और एक आंख के बिना उन्होंने जो शौर्य दिखाया, उसे दुश्मन भी कभी भूल नहीं पाए।

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