Nepal : नेपाल में क्यों हो रही राजशाही की मांग?
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नेपाल (Nepal) में हाल ही में हुए प्रदर्शनों ने एक बार फिर राजशाही की बहाली की मांग को सुर्खियों में ला दिया है। पिछले 19 वर्षों में नेपाल एक लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में कार्य कर रहा है, लेकिन जनता के एक बड़े वर्ग में असंतोष और निराशा गहराती जा रही है। राजनीतिक अस्थिरता, व्यापक भ्रष्टाचार, आर्थिक संकट और बेरोजगारी जैसे मुद्दों ने आम लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या राजशाही का पुनः आगमन देश की समस्याओं का समाधान हो सकता है?
हाल ही में काठमांडू में हुए प्रदर्शनों के दौरान राजशाही समर्थकों और पुलिस के बीच हिंसक झड़पें हुईं, जिनमें तीन लोगों की मौत हो गई और 110 प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया। इस घटना ने नेपाल (Nepal) की राजनीतिक स्थिति को और अधिक जटिल बना दिया है।
इस बीच, सरकार ने पूर्व राजा ज्ञानेंद्र बीर बिक्रम शाह (Gyanendra Bir Bikram Shah Dev) की विदेश यात्रा पर रोक लगा दी है। साथ ही, उनकी सुरक्षा भी घटा दी है। वहीं, राजशाही समर्थक आंदोलन के संयोजक नवराज सुबेदी को नजरबंद कर लिया गया है।
इस लेख में हम समझने की कोशिश करेंगे कि आखिर Nepal में लोग राजशाही की बहाली क्यों चाहते हैं और इसके पीछे क्या प्रमुख कारण हैं।
राजनीतिक अस्थिरता और सरकारों का बार-बार बदलना
Nepal में 2008 में राजशाही समाप्त होने के बाद से अब तक 13 अलग-अलग सरकारें बन चुकी हैं। औसतन हर डेढ़ साल में सरकार बदल जाती है, जिससे प्रशासनिक ढांचा कमजोर हो गया है और दीर्घकालिक नीतियों का क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है।
प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने 2020 में संसद को भंग करने की कोशिश की, जिससे देश में बड़ा राजनीतिक संकट खड़ा हुआ। पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दाहाल 'प्रचंड', जो कभी माओवादी नेता थे, अब लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत प्रधानमंत्री हैं, लेकिन उनकी सरकार पर भी भ्रष्टाचार और नाकामी के आरोप लग रहे हैं।
नेपाल (Nepal) में बार-बार सरकार गिरने और अस्थिर राजनीति के चलते आम नागरिकों में विश्वास की कमी हो गई है। उन्हें लगता है कि यदि राजशाही सत्ता में होती, तो देश को ऐसी अस्थिरता का सामना नहीं करना पड़ता।
बढ़ता भ्रष्टाचार और नेताओं पर लगे गंभीर आरोप (Corruption in nepal)
नेपाल के कई शीर्ष नेताओं पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं। जनता का मानना है कि वर्तमान व्यवस्था में भ्रष्टाचारियों को संरक्षण मिल रहा है, और लोकतंत्र के नाम पर सिर्फ राजनीतिक दलों और उनके नेताओं को फायदा हो रहा है। भ्रष्टाचार के कुछ प्रमुख मामले :
- प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली (KP Sharma Oli) - सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद एक टी एस्टेट (चाय बागान) को व्यावसायिक भूखंडों में बदलने का मामला।
- पूर्व प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टराई, माधव कुमार नेपाल और खिलराज रेग्मी - सरकारी जमीन को निजी व्यक्तियों को अवैध रूप से हस्तांतरित करने का आरोप।
- पुष्प कमल दाहाल 'प्रचंड' - माओवादी युद्धकालीन फंड का गबन, जिसमें कथित रूप से करोड़ों रुपये का घोटाला हुआ।
- शेर बहादुर देउबा (पांच बार Nepal के प्रधानमंत्री रहे) - हवाई जहाज खरीदने में अवैध कमीशन लेने का आरोप।
- अर्जुना राणा देउबा (शेर बहादुर देउबा की पत्नी और Nepal की विदेश मंत्री) - नेपालियों को फर्जी भूटानी नागरिक बनाकर अमेरिका में शरणार्थी भेजने का घोटाला।
नेपाल (Nepal) में आम जनता यह मानती है कि यदि राजशाही सत्ता में होती, तो इस तरह के भ्रष्टाचार की घटनाएं नहीं होतीं। जनता का विश्वास मौजूदा नेताओं से उठ चुका है और वे इसे लोकतंत्र की विफलता मानते हैं।
नेपाल (Nepal) की आर्थिक स्थिति और बढ़ती बेरोजगारी
नेपाल (Nepal) की अर्थव्यवस्था पिछले कुछ वर्षों में लगातार गिरावट की ओर है। रोजगार की कमी के कारण हजारों नेपाली युवा खाड़ी देशों, मलेशिया और भारत में काम करने जा रहे हैं। महंगाई और जीवनयापन की लागत बढ़ती जा रही है, लेकिन वेतन स्थिर है।
नेपाल (Nepal) में विदेशी निवेश लगातार घट रहा है, जिससे देश की आर्थिक वृद्धि रुक गई है। वित्तीय अनुशासन की कमी के कारण सरकारी खर्च नियंत्रण से बाहर हो गया है।
इन आर्थिक समस्याओं के चलते जनता में मौजूदा लोकतांत्रिक सरकार के प्रति आक्रोश बढ़ रहा है। लोग सोच रहे हैं कि राजशाही के समय नेपाल आर्थिक रूप से अधिक स्थिर था।
विश्व बैंक की रिपोर्ट कहती है कि सरकार सही जगह पैसा नहीं खर्च कर पा रही है। सरकार को कम टैक्स मिल रहा है और विकास कार्यों पर खर्च बहुत धीमा हो रहा है। सरकार आमतौर पर साल के आखिरी महीनों में जल्दी-जल्दी पैसा खर्च कर देती है। इससे निवेश की गुणवत्ता खराब हो जाती है और अचानक ज्यादा खर्च होने से महंगाई भी बढ़ती है।
राजशाही की वापसी की मांग इसलिए जोर पकड़ रही
पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह (Gyanendra Shah) की सक्रियता
पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह ने खुलकर अपनी वापसी की इच्छा नहीं जताई है, लेकिन वे जनता से लगातार संवाद कर रहे हैं। वे धार्मिक यात्राओं और तीर्थयात्राओं के माध्यम से लोगों के बीच अपनी मौजूदगी बनाए हुए हैं।
उन्होंने राष्ट्रीय एकता और मेल-मिलाप का संदेश दिया है। हाल ही में उन्होंने कहा कि नेपाल जैसे पारंपरिक समाज में राजशाही ही एकता का प्रतीक हो सकती है।
जब ज्ञानेंद्र शाह (Gyanendra Shah) पोखरा से काठमांडू लौटे, तो हजारों समर्थकों ने हवाई अड्डे पर उनका स्वागत किया और 'राजा आओ, देश बचाओ' के नारे लगाए।
हिंसक झड़पें और विरोध प्रदर्शन (Violent protests in Nepal)
28 मार्च 2025 को काठमांडू में राजशाही समर्थकों और पुलिस के बीच हिंसक झड़पें हुईं। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर आंसू गैस के गोले दागे और लाठीचार्ज किया। कई राजशाही समर्थक नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया, जिनमें नवराज सुबेदी, धवल शमशेर राणा और रविंद्र मिश्रा शामिल हैं।
कुछ प्रदर्शनकारियों ने पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड और माधव कुमार नेपाल के पार्टी कार्यालयों पर हमला किया। इस घटना के बाद, नेपाल (Nepal) में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों में उथल-पुथल मच गई है।
क्या नेपाल (Nepal) में फिर से राजशाही आ सकती है?
वर्तमान में नेपाल (Nepal) एक लोकतांत्रिक गणराज्य है, लेकिन यदि जनता का असंतोष इसी तरह बढ़ता रहा, तो भविष्य में जनमत संग्रह कराया जा सकता है।
राजशाही समर्थक चाहते हैं कि नेपाल (Nepal) में फिर से संवैधानिक राजतंत्र लागू किया जाए, जहां राजा का एक सांकेतिक स्थान हो, लेकिन प्रशासन लोकतांत्रिक तरीके से चलता रहे।
सरकार यदि राजशाही समर्थकों की आवाज को दबाने की कोशिश करेगी, तो यह आंदोलन और तेज हो सकता है।
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