Aurangzeb : एलोरा की गुफाएं देख औरंगजेब को क्यों याद आए जिन्न



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औरंगजेब (Aurangzeb) लंबे समय तक औरंगाबाद (अब संभाजी नगर) में रहा। इस दौरान उसने जब एलोरा की गुफाएं देखीं, तो चौंक उठा।

छत्रपति संभाजी नगर (पहले औरंगाबाद) के साथ औरंगजेब (Aurangzeb) का रिश्ता उतार-चढ़ाव भरा रहा। कह सकते हैं कि औरंगजेब आखिरी प्रभावशाली मुगल शासक था और उसकी विरासत पर प्रभाव पड़ा इस शहर का। इतिहास से पता चलता है कि उसने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा औरंगाबाद में बिताया। पहले एक सूबेदार के रूप में और फिर शासक के रूप में। 

औरंगजेब (Aurangzeb) का असर यहां आज भी दिखता है। फिर चाहें वे महल हों, बाजार, झील, मस्जिद या फिर मंदिर। अतीत के ये अवशेष पूरे शहर में बिखरे हुए हैं, जिसे द्वारों का शहर कहते हैं। 

औरंगाबाद का एक प्रमुख स्थल है बीबी का मकबरा। यहां औरंगजेब (Aurangzeb) की पत्नी दिलरस बानो की कब्र है। बादशाहनामा के मुताबिक, इसका निर्माण 1652 से 1660 ईसवी के बीच कराया गया।

आधिकारिक दस्तावेजों से पता चलता है कि औरंगजेब को पहली बार 1636 में सूबेदार की जिम्मेदारी देकर दक्कन भेजा गया था। वह यहां 1644 तक रहा। एक दिन उसे खबर मिली कि उसकी बहन जहांआरा एक हादसे में बुरी तरह जल गई है। अपने पिता शाहजहां की अनुमति के बिना वह आगरा की ओर दौड़ पड़ा। नतीजे में उसे बादशाह का गुस्सा झेलना पड़ा। 

औरंगजेब (Aurangzeb) को सजा में मिला ट्रांसफर

औरंगजेब का ट्रांसफर कर दिया गया काबुल और कंधार। इस इलाके में पोस्टिंग को सजा के तौर पर लिया जाता था। वजह थी कि यहां नियंत्रण बनाए रखना बहुत कठिन था। 1651 में उसे वापस बुलाया गया और फिर तैनाती मिली दक्कन में। और सात बरसों तक दक्कन का सूबेदार बने रहने के बाद एक दिन औरंगजेब फिर से आगरा पहुंचा। इस बार बीमार पिता और अपने भाइयों के खिलाफ गद्दी की लड़ाई के लिए। 

इतिहासकार ईश्वरी प्रसाद ने अपनी क़िताब 'ए शॉर्ट हिस्ट्री ऑफ मुस्लिम रूल ऑफ इंडिया' में लिखा है कि शाहजहां के ठीक होते ही औरंगजेब ने उन्हें आगरा के किले में कैद कर दिया। अपनी बेटी जहांआरा के साथ आठ बरसों तक वह जेल में रहे। कहा जाता है कि पिता के साथ बेहद बुरा बर्ताव करता था औरंगजेब। छोटी-छोटी सुविधाओं से दूर रखा था उन्हें। 22 जनवरी 1666 को मौत के साथ शाहजहां को इस जिल्लत भरी कैद से आजादी मिली। उन्हें ताजमहल में उनकी पत्नी मुमताज के बगल में दफनाया गया। 

औरंगजेब (Aurangzeb) के मुगल सल्तनत संभालने के दो दशक बाद मराठा साम्राज्य के 11वें पेशवा रघुनाथराव भट ने औरंगाबाद पर हमला बोला। यह वो वक्त था, जब बीजापुर के आदिल शाह और गोलकुंडा के कुतुब शाह के साथ मराठा बेहद साहसी, उग्र और मजबूत हो गए थे। इस हमले ने औरंगजेब (Aurangzeb) को 1682 में दक्कन लौटने के लिए मजबूर कर दिया। अपनी मौत तक वह सुल्तानों और मराठों से लड़ता रहा।  

विवादों का दूसरा नाम Aurangzeb

इन सबके बावजूद औरंगाबाद में औरंगजेब (Aurangzeb) की सबसे बड़ी निशानी, उसकी कब्र अपेक्षित पड़ी है। अधिकांश इतिहासकार इसकी वजह यह बताते हैं कि औरंगजेब विरोधाभासों और विवादों से घिरा हुआ नाम है। उसकी गिनती भारत के सबसे बदनाम शासकों में होती है। एक ऐसा बादशाह, जो निर्दयी, अत्याचारी और विस्तारवादी था। उसने सख्त शरिया कानून लागू किया और भेदभावपूर्ण जजिया कर को वापस ले आया। इसके तहत हिंदुओं को अपनी सुरक्षा के लिए टैक्स देना पड़ता था। 

इस क्षेत्र में ही एलोरा की गुफाएं हैं और औरंगजेब (Aurangzeb) का उनसे भी जुड़ाव था। ये गुफाएं ईसा से 600 से एक हजार वर्ष पहले बनाई गईं। पत्थरों को काटकर बना सबसे बड़ा हिंदू कॉम्प्लेक्स है ये गुफाएं। इनके प्रति औरंगजेब के आकर्षण को साकी मुस्तैद ने अपनी 1710 की पुस्तक मआसिर-ए-आलमगीरी में लिखा है। 

साकी के मुताबिक, दक्कन के सूबेदार के रूप में अपने शुरुआती दिनों में औरंगजेब (Aurangzeb) शिकार के लिए दौलताबाद, खुल्दाबाद और एलोरा में घूमता था। यहां तक कि वह पत्नी, परिवार और दोस्तों को भी गुफाओं में ले गया था। औरंगजेब ने लिखा है, 'एलोरा की गुफाएं साधारण मनुष्यों नहीं बल्कि जिन्नों की कृति हैं। यह घूमने के लिए अद्भुत जगह है, आंखों के लिए आकर्षक। जब तक कोई इसे नहीं देखता, तब तक कोई लिखित विवरण इसे सही ढंग से चित्रित नहीं कर सकता है। यहां मेरी कलम मेरी कहानी के पन्नों को सजा सकती है।'

अपने शासनकाल में बेहतर प्रशासन के लिए औरंगजेब ने औरंगाबाद को 54 पुरों या कॉलोनी में बांटा था। हर हिस्से का नाम कुलीन और दरबारियों पर रखा गया। 

यही वह दौर था, जब वह बेरहमी से अपनी सीमाओं का विस्तार कर रहा था। उसने पड़ोसी राज्यों पर हमला किया, फिर चाहें वहां हिंदू शासन हो या मुस्लिम। वह पांच मुस्लिम सल्तनतों के खिलाफ लगातार लड़ता रहा। ये सल्तनत बहमनी वंश से निकली थीं। इनमें अहमदनगर के निजामशाही, बीजापुर के आदिल शाही, गोलकुंडा के कुतुब शाही, बीदर के बरीद शाही और बरार के इमाद शाही शामिल थे।

युद्ध में इन सभी की हार हुई। औरंगजेब (Aurangzeb) ने उन्हें बुरी तरह बर्बाद कर दिया। लेकिन, उसकी लड़ाई खत्म नहीं हुई। छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशजों - संभाजी, राजाराम और ताराबाई से उसका संघर्ष जारी रहा। हालांकि उसने पुरंदर और कई अन्य किले जीत लिए, पर मराठों की गुरिल्ला युद्ध नीति ने उसे बुरी तरह निराश कर दिया। आर्थिक रूप से उसे बहुत नुकसान हुआ। मौत के वक्त वह बिल्कुल टूटा हुआ था।

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