Postal service : पेंगुइन के देश से, समुद्र के पार - आती हैं कैसी-कैसी डाक
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कल्पना कीजिए, साल 1850 है। कोई ब्रिटिश व्यापारी लंदन की किसी तंग गली में बैठा, कलम और स्याही से एक चिट्ठी लिख रहा है। वह चिट्ठी लंदन के बंदरगाह से रवाना होती है, जहाज पर चढ़ती है, समुद्र पार करती है, मिस्र पहुंचती है, फिर ऊंटों की पीठ पर सवार होती है, सिनाई रेगिस्तान से गुजरती है, लाल सागर पार करती है, फिर किसी और जहाज पर लदी जाती है, और आखिरकार हफ्तों बाद, वह बंबई (अब मुंबई) में किसी बंगले में दस्तक देती है।
यह किसी उपन्यास की कल्पना नहीं, बल्कि ब्रिटिश इंडिया में Overland Mail Route की हकीकत थी। ब्रिटेन और भारत के बीच यह सेवा उस दौर की सबसे लंबी और विश्वसनीय डाक सेवा थी। यह सिर्फ चिट्ठी नहीं थी, बल्कि एक रिश्ते की डोर थी, जो साम्राज्य के दो सिरों को जोड़ती थी।
यह डाक सेवा ब्रिटेन से भारत तक चलती थी। इसकी शुरुआत 19वीं सदी के मध्य में हुई, जब ब्रिटिश साम्राज्य के लिए अपनी दूरदराज की कॉलोनियों से संवाद बनाए रखना जरूरी हो गया। पारंपरिक समुद्री मार्गों में समय बहुत लगता था। ऐसे में जमीन और समुद्र, दोनों रास्तों को मिलाकर एक Overland and Sea Mail Route तैयार किया गया।
इस रूट में लंदन से फ्रांस के मार्से तक ट्रेन से डाक जाती। वहां से भूमध्य सागर पार करके मिस्र के अलेक्जान्द्रिया पहुंचती। फिर एक स्पेशल रेल और ऊंटों के जरिए इसे काहिरा से स्वेज तक ले जाया जाता। स्वेज से डाक को जहाज़ में रखकर अरब सागर के रास्ते बॉम्बे भेजा जाता। इस दौरान एक चिट्ठी करीब 11 हजार किलोमीटर की दूरी तय करती।
जब कबूतर, धमाल और धावक करते थे डाक का काम
डाक की कहानी और भी पीछे जाती है। इतिहास बताता है कि प्राचीन भारत में अशोक के दौर में घोड़े और पैदल धावकों की मदद से संदेश पहुंचाए जाते थे। मुगलों ने इसे संस्थागत रूप दिया, 'डाक चौकी' बनीं, जहां से घुड़सवार संदेशवाहक चलते थे। वही परंपरा अंग्रेजों के साथ आधुनिकीकरण की तरफ बढ़ी।
और तो और, दुनियाभर में संदेशों की डिलीवरी के लिए कबूतरों का भी इस्तेमाल होता था। इन कबूतरों को ट्रेन किया जाता था, और युद्ध के समय भी यही जीवनरेखा बनते थे।
Port Lockroy, जहां Antarctica में भी पहुंचती है डाक
अब जरा Antarctica की बर्फीली, सर्द चुप्पियों की कल्पना कीजिए। यहां मौजूद है Port Lockroy - दुनिया का सबसे दक्षिणी डाकघर। हर साल, नवंबर से मार्च तक, जब समुद्र थोड़ी मोहलत देता है, तब यहां करीब 70,000 से ज्यादा पोस्टकार्ड दुनिया के कोनों तक भेजे जाते हैं।
Port Lockroy न सिर्फ डाक सेवा का एक बेमिसाल उदाहरण है, बल्कि यह दिखाता है कि जहां इंसान पहुंचा है, वहां चिट्ठियों ने भी अपनी जगह बना ली है।
Port Lockroy एक छोटा-सा, लेकिन बेहद खास डाकघर है, जो अंटार्कटिका के बर्फीले विस्तार में स्थित है। यह शायद दुनिया का सबसे दूरस्थ और ठंडा डाकघर है, जो हर साल हजारों पर्यटकों की चिट्ठियों को घरों तक पहुंचाने का अनूठा काम करता है।
यह डाकघर ब्रिटेन द्वारा संचालित होता है और Goudier Island पर है। इसकी शुरुआत 1944 में हुई थी, जब ब्रिटिश सेना ने इसे ‘Base A’ के नाम से एक शोध केंद्र के रूप में स्थापित किया था।
साल 1996 में, इसे एक संग्रहालय और कार्यशील पोस्ट ऑफिस के रूप में फिर से खोला गया। तब से यह UK Antarctic Heritage Trust द्वारा संचालित किया जा रहा है।
कौन भेजता है यहां से चिट्ठियां?
Port Lockroy से सालाना लगभग 80,000 पोस्टकार्ड दुनिया भर के करीब 100 देशों में भेजे जाते हैं। यहां न तो पक्की सड़क है, न मोबाइल सिग्नल, और न ही इंटरनेट।
ये चिट्ठियां ज्यादातर अंटार्कटिका घूमने आए टूरिस्ट्स भेजते हैं। हर साल लगभग 18,000 लोग इस पोस्ट ऑफिस तक पहुंचते हैं, और बर्फ के बीच से अपने घरवालों को कुछ लिख भेजते हैं।
Port Lockroy से चिट्ठियां पहले याच या क्रूज शिप के जरिए अर्जेंटीना (ज्यादातर Ushuaia पोर्ट) पहुंचाई जाती हैं, फिर वहां से हवाई मार्ग से ब्रिटेन और फिर बाकी दुनिया में। यह सफर कभी-कभी हफ्तों से लेकर महीनों तक ले सकता है।
एक पेंगुइन कॉलोनी के बीच डाकिया
Port Lockroy न सिर्फ एक डाकघर है, बल्कि यहां Gentoo Penguins की एक बड़ी कॉलोनी भी रहती है। यहां काम करने वाले कर्मचारियों को हर दिन पेंगुइनों के साथ सहजीवन में रहना होता है। डाकघर को चलाने के लिए हर साल 4-5 लोगों की एक टीम चुनी जाती है, जो कई महीनों तक दुनिया से कटकर वहां रहती है।
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इसे Operation Tabarin के तहत बनाया गया था ताकि ब्रिटेन अंटार्कटिका में अपनी उपस्थिति बनाए रखे। यह ब्रिटेन का पहला स्थायी अंटार्कटिक बेस था।
अब यह एक हेरिटेज साइट और म्यूजियम भी है, जहां पुराने रेडियो, किचन और ऑफिस स्पेस को वैसे ही रखा गया है जैसे 1950 के दशक में हुआ करता था। सर्दियों में यह पोस्ट ऑफिस बंद हो जाता है, क्योंकि अंटार्कटिका पूरी तरह से बर्फ से ढक जाता है और इंसानों का आना असंभव हो जाता है।
एक बर्फीली कहानी कनाडा से भी
कनाडा की भी एक लंबी दूरी की डाक यात्रा है। युकोन (Yukon) से नूनावुत (Nunavut) तक, हजारों किलोमीटर की यह सेवा अक्सर बर्फीले तूफानों, जमी हुई झीलों और बेहद दुर्गम रास्तों से गुजरती है। कभी स्लेज डॉग्स तो कभी छोटे विमानों की मदद से यह डाक सेवा कनाडा के आर्कटिक हिस्सों में भी पहुंच जाती है। यहां डाक सिर्फ संपर्क का साधन नहीं, बल्कि जीवन की आवश्यकता है।
तो अगली बार जब कोई पोस्टकार्ड आपके दरवाजे पर दस्तक दे, जरा उसकी यात्रा की कल्पना कीजिए। हो सकता है वो किसी बर्फीले टापू से आया हो, या किसी रेगिस्तानी कारवां का हिस्सा रहा हो।
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