Mughal History : मुगल राजकुमारी जो अगवा होने के बाद दासी बनी और फिर संत


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मुगल इतिहास (Mughal History) से जुड़े एक पन्ने पर मीरा का भी नाम है। यह मीरा भी संत थी और जिसने भारत-मैक्सिको को जोड़ने का काम किया।

कल्पना कीजिए - किसी भारतीय राजकुमारी को 9 साल की उम्र में अगवा कर लिया जाए, गुलाम बनाकर हजारों मील दूर एक अनजाने देश में बेच दिया जाए, लेकिन वही लड़की एक दिन उस देश की सबसे पूजनीय 'संत' बन जाए, और जिस घर में उसने आखिरी सांस ली, वो आज एक लग्जरी होटल बन जाए!

जी हां, यह कोई फिल्मी कहानी नहीं, बल्कि इतिहास की उन भूली-बिसरी परतों में दर्ज एक हकीकत है, जो भारत और मैक्सिको (Mexico) को एक भावनात्मक रेखा से जोड़ती है। और इस कड़ी का नाम है मीरा (Mira), जिसे मैक्सिको में कैटरिना डे सैन युआन (Catarina de San Juan) या चाइना पोब्लाना (China Poblana) के नाम से जाना जाता है।

इसका एक सिरा मुगल इतिहास (Mughal History) से भी जुड़ता है।

एक होटल, जिसमें बसी है इतिहास की आत्मा

मैक्सिको के प्यूबला (Puebla) शहर में एक आलीशान होटल है - कसोना दे ला चाइना पोब्लाना (Hotel Casona De La China Poblana)। इसके एक सुइट का नाम है मीरा सुइट (Mira Suite), और पास ही एक दूसरा कमरा है, जो अकबर सुइट (Akbar Suite) के नाम से जाना जाता है। ये नाम सुनकर कोई भी सोच में पड़ सकता है कि भारतीय इतिहास के किरदारों का मेक्सिकन होटल से क्या नाता?

लेकिन अगर आप इतिहास के झरोखे खोलें, तो जवाब खुद-ब-खुद सामने आ जाएगा - भारत की एक अगवा लड़की की गाथा, जिसने वहां की संस्कृति, फैशन और धार्मिक चेतना को नई दिशा दी।

आगरा से मनीला और फिर प्यूबला तक

17वीं सदी की बात है। कहा जाता है कि मीरा, मुगल बादशाह अकबर (Mughal History : Emperor Akbar) की भतीजी थी, आगरा की एक रॉयल बच्ची। मात्र 9 वर्ष की उम्र में वह पुर्तगाली समुद्री लुटेरों के हाथ लग गई, जो उसे कोचीन ले गए। वहां तब व्यापार और गुलामों का बड़ा अड्डा हुआ करता था।

उसके बाद मीरा को गुलामों की मंडी में बेच दिया गया। वहां उसका धर्म परिवर्तन कर ईसाई नाम दिया गया, कैटरिना (Catarina)। इस तरह उसकी पहचान, उसका धर्म, उसका देश - सब छीन लिया गया। कुछ समय बाद उसे मनीला ले जाया गया, जहां एशियाई मूल की गुलामों की भारी मांग थी।

'चाइना' का अर्थ था एशियाई लड़की

तब मैक्सिको में एशियाई लोगों को 'चाइना' (China) या 'चाइनो' (Chino) कहा जाता था। इसका चीन से कोई संबंध नहीं था, बल्कि भारत, जापान, फिलीपींस जैसे देशों से आए लोगों के लिए ये शब्द उपयोग होता था।

1620 के आसपास, मीरा को एक व्यापारी ने खरीद लिया और प्यूबला के एक रईस दंपती को बेच दिया। यह सौदा मामूली नहीं था। रईस दंपती ने मीरा के लिए 10 गुना ज्यादा दाम चुकाया। यहां मीरा ने वर्षों तक सेविका के रूप में काम किया और बाद में उन्हें आजादी मिल गई।

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स्वतंत्रता के बाद आध्यात्म की ओर झुकाव

खैर, गुलामी से मुक्ति के बाद मीरा ने एक स्थानीय क्लर्क के यहां काम किया, जिसकी मदद से उसकी शादी एक 'चाइनीज' मूल के व्यक्ति से हुई। पति और क्लर्क दोनों की मृत्यु के बाद वह अकेली रह गई।

उसी मोहल्ले के एक धनाढ्य व्यक्ति ने उसे अपने घर के एक कमरे में जगह दी। यहीं से मीरा की आत्मिक यात्रा शुरू हुई। कहा जाता है कि उसे ईसा मसीह के दर्शन होने लगे। वह हर समय ध्यान में रहती, प्रार्थना करती और लोगों की परेशानियों को सुनती।

धीरे-धीरे प्यूबला शहर में लोग उसे संत मानने लगे। और इस तरह एक अगवा की गई बच्ची, जो दासी बनी, अब मैक्सिको की संत (Mexican Saint) बन गई।

फैशन क्रांति की जननी

मीरा ने भारतीय साड़ी को कभी नहीं छोड़ा। वह पारंपरिक वस्त्रों में ही रहती थी। लेकिन उसने अपनी पोशाक में स्थानीय मैक्सिकन संस्कृति के रंग भी मिलाए - रंग-बिरंगे फूल, एम्ब्रॉयडरी, बीड्स और सीक्वेंस से सजी स्कर्ट, छोटी बांहों वाला ब्लाउज और हाथ से बुना हुआ दुपट्टा।

यह नया अंदाज इतना लोकप्रिय हुआ कि उसे 'चाइना पोब्लाना लुक' (China Poblana Look) कहा जाने लगा। आज भी मैक्सिको के पारंपरिक त्योहारों, लोक-नृत्यों और धार्मिक आयोजनों में महिलाएं इसी ड्रेस में नजर आती हैं।

5 जनवरी, 1688 को मीरा का निधन हुआ। दो दिन तक पूरा शहर उन्हें श्रद्धांजलि देने उमड़ पड़ा। उन्हें ला टुंबा डे ला चाइना पोब्लाना (La Tumba de la China Poblana) नामक चर्च में दफनाया गया। वहां आज भी उनकी कब्र एक श्रद्धा स्थल बनी हुई है।

पादरियों ने उनकी जीवनी लिखवाई, जो पहली बार 1691 में प्रकाशित हुई। लेकिन 1692 में उनकी तस्वीरों और जीवन वृत्त पर प्रतिबंध लगा दिया गया। कुछ लोग नहीं चाहते थे कि एक भारतीय मूल की महिला को मैक्सिकन संत के रूप में पूजा जाए।

आज भी जिंदा है मीरा की याद

आज भी उस घर की दीवार पर, जहां मीरा ने आखिरी सांस ली, एक नेमप्लेट लगी है जिस पर स्पैनिश में लिखा है, '5 जनवरी 1688 को भारत की राजकुमारी मीरा का यहीं निधन हुआ, जो बाद में सिस्टर कैटरिना डे सैन युआन बनीं और चाइना पोब्लाना के नाम से पूजनीय हुईं।'

मीरा की कहानी हमें यह याद दिलाती है कि इतिहास सिर्फ राजा-महाराजाओं की विजय गाथाएं नहीं होता, बल्कि वह उन आवाजों की भी गाथा है जो दूर किसी देश में जाकर भी खुद को मिटने नहीं देतीं। India-Mexico cultural ties की यह अद्भुत मिसाल आज भी प्यूबला की गलियों में सांस लेती है - कभी चाइना पोब्लाना के रंग-बिरंगे लिबास में, कभी होटल की दीवारों पर टंगी तस्वीरों में, और कभी किसी लोकनृत्य की ताल पर झूमती औरतों के वेश में।

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