Dr. B.R. Ambedkar : अंबेडकर की जगह लेना चाहता था एक अंग्रेज
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डॉक्टर भीमराव अंबेडकर (Dr. B.R. Ambedkar) ने भारतीय संविधान को आकार देने में खूब मेहनत की, लेकिन यह जिम्मेदारी उन्हें मिली कैसे - इसकी भी एक कहानी है। अंबेडकर जयंती (Ambedkar Jayanti) पर विशेष।
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर (Dr. B.R. Ambedkar) का नाम सुनते ही दिमाग में कोंधता है संविधान। वह शख्स जिसने सामाजिक न्याय की नींव रखी और समानता पर बात की।
संविधान, केवल कानूनों की एक किताब भर नहीं है। यह भारत की आत्मा है, इसकी विविधता में एकता का अद्भुत प्रमाण है। लेकिन इस आत्मा को स्वरूप देने की प्रक्रिया किसी सीधी रेखा जैसी नहीं थी। इसके पीछे था एक संघर्ष - अंबेडकर (Dr. B.R. Ambedkar) बनाम जेनिंग्स।
आप सवाल पूछ सकते हैं कि ये जेनिंग्स कौन हैं, कहां से बीच में आ गए और हमारे अंबेडकर से इनकी क्या तुलना?
तो आइवर जेनिंग्स (Ivor Jennings) वह हैं, जो संविधान (Indian Constitution) की ड्राफ्टिंग कमिटी के अध्यक्ष बन सकते थे। अगर जवाहरलाल नेहरू की चलती, तो भारतीय संविधान बनाने का जिम्मा उन्हीं के पास होता, डॉ. अंबेडकर (Dr. B.R. Ambedkar) के पास नहीं।
आइवर जेनिंग्स (Ivor Jennings) ब्रिटिश संविधानविद् थे। उन्होंने कई दूसरे देशों के संविधान भी तैयार किए। इनमें पाकिस्तान भी है। पाकिस्तान का हश्र क्या हुआ, यह एक अलग कहानी है, जिसे आप यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं।
भारतीय संविधान (Indian Constitution) के निर्माण के दौरान अंबेडकर या जेनिंग्स एक ऐसा सवाल था, जिस पर अब गहरी चुप्पी है। जिसे इतिहास की मोटी किताबों के पन्नों में दबा दिया गया है।
संविधान सभा का गठन
भारत की संविधान सभा (Constituent Assembly of India) एक ऐसी संस्था थी, जिसे देश का संविधान बनाने के लिए तैयार किया गया था। यह सभा दो तरह से बनी थी - कुछ सदस्य चुने गए थे और कुछ को रियासतों (राजघरानों) ने नामित किया था। चुने गए सदस्य ब्रिटिश भारत की प्रांतीय विधानसभाओं ने 1946 के चुनावों के बाद चुने थे।
जब अगस्त 1947 में भारत आजाद हुआ, तो यही संविधान सभा भारत की अस्थायी संसद (Provisional Parliament) के रूप में भी काम करने लगी।
संविधान सभा का विचार सबसे पहले वी. के. कृष्ण मेनन (V. K. Krishna Menon) ने साल 1933 में रखा था। बाद में इसे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Indian National Congress) ने अपनी मांगों में शामिल कर लिया।
खैर, बात है संविधान सभा के गठन के करीब एक साल बाद की। 29 अगस्त 1947 को ड्राफ्ट कमेटी का गठन किया गया। इस सात सदस्यीय समिति को भविष्य का भारत रचने की जिम्मेदारी सौंपी गई। लेकिन इस समिति का नेतृत्व कौन करेगा, इसे लेकर गहरा विचार-मंथन चल रहा था। तब सत्ता की बागडोर जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) और सरदार पटेल के हाथ में थी।
दोनों अंतरिम सरकार को चला रहे थे। नेहरू अंतरिम सरकार के प्रमुख थे और पटेल की पोजिशन नंबर दो की थी।
जब नेतृत्व के नाम पर टकरा गए विचार
जून 1947 में महात्मा गांधी ने नेहरू से पूछा, 'ड्राफ्टिंग कमेटी का अध्यक्ष कौन होगा?' नेहरू ने जवाब दिया, 'आइवर जेनिंग्स।'
नेहरू के अनुसार, भारत को आधुनिक, व्यावहारिक और पश्चिमी सांचे में ढला संविधान चाहिए था, और इसके लिए जेनिंग्स सबसे उपयुक्त व्यक्ति थे। लेकिन गांधी जी का जवाब था, 'भारतीय संविधान, भारतीयों द्वारा ही बनना चाहिए।'
गांधी जी ने अंबेडकर (Dr. B.R. Ambedkar) का नाम सुझाया। उन्हें यह एहसास था कि अंबेडकर के पास न केवल विधिक ज्ञान है बल्कि दलित समाज का वह दर्द भी है, जो संविधान के जरिए न्याय मांगता है। नेहरू को झुकना पड़ा। पटेल खामोश रहे। इस तरह डॉक्टर अंबेडकर (Dr. B.R. Ambedkar) को ड्राफ्टिंग कमिटी का अध्यक्ष बनाया गया।
नेहरू और अंबेडकर में राजनीतिक दूरी की वजह
ऐतिहासिक दस्तावेज यह भी बताते हैं कि पंडित नेहरू और अंबेडकर (Nehru and Ambedkar) के बीच एक तरह की दूरी थी। इसका एक कारण यह था कि 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) के दौरान अंबेडकर ब्रिटिश सरकार में श्रम मंत्री थे। वहीं नेहरू जेल में थे। नेहरू की नजर में यह 'सत्ता से सहयोग' था, जबकि अंबेडकर के लिए यह सामाजिक न्याय की राह थी। यह मतभेद बाद तक बना रहा।
आइवर जेनिंग्स की पीड़ा और आलोचना
जब अंबेडकर (Dr. B.R. Ambedkar) को ड्राफ्ट कमेटी का प्रमुख बनाया गया, तब जेनिंग्स के मन में खटास रह गई। मद्रास विश्वविद्यालय में 1951 में अपने भाषण में उन्होंने भारतीय संविधान को 'उधार का थैला' और 'वकीलों का स्वर्ग' कहा।
जेनिंग्स ने कहा कि यह संविधान इतना लंबा, जटिल और कठोर है कि शायद ही काम कर पाए। लेकिन समय ने सिद्ध कर दिया कि भारतीय संविधान न सिर्फ चल पड़ा, बल्कि दुनिया के सबसे लंबे और सबसे सफल लोकतांत्रिक दस्तावेजों में शुमार हो गया।
जेनिंग्स ने बाद में श्रीलंका (तब Ceylon), मलेशिया, पाकिस्तान और नेपाल के संविधान बनाने में मदद की। कहीं भी उनका बनाया संविधान टिक नहीं पाया। श्रीलंका का संविधान 1955 में बना, लेकिन सिर्फ 6 साल ही चल सका। वहीं, पाकिस्तान ने अपने संविधान का कैसा मजाक बनाया, यह किसी से छिपा नहीं है।
Dr. B.R. Ambedkar का विजन
डॉ. अंबेडकर (Dr. B.R. Ambedkar) ने संविधान को सिर्फ कानून की किताब नहीं, बल्कि सामाजिक क्रांति का औजार बनाया। उन्होंने हर उस वर्ग को आवाज दी, जिसे सदियों से चुप कराया गया था। यह संविधान सिर्फ संसदीय ढांचे की नींव नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय, समानता और समावेशिता का गहना है।
संविधान ने भारत को वह दिशा दी, जिस पर चलते हुए आज हम 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहे हैं। और यह सब उस Drafting Committee की सोच का परिणाम है, जिसकी बागडोर डॉ. भीमराव अंबेडकर (Dr. B.R. Ambedkar) के हाथ में थी।
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