56 Bhog : भगवान को 56 भोग क्यों लगते हैं? जानिए इसकी पौराणिक कथा

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प्रभु को 56 भोग ही क्यों अर्पित किए जाते हैं? जानिए मां यशोदा, गोवर्धन पूजा और राधा-कृष्ण से जुड़ी रोचक कथाएं और छप्पन भोग का रहस्य।

कभी सोचा है कि मंदिरों में या त्योहारों के दिन भगवान को 56 प्रकार के व्यंजन क्यों अर्पित किए जाते हैं? क्यों एक-दो नहीं, पूरे छप्पन भोग (56 Bhog) ही बनाए जाते हैं? क्या भगवान केवल इन्हीं व्यंजनों से प्रसन्न होते हैं? क्या इसमें कोई रहस्य छिपा है?

इन सवालों के जवाब हमें सीधे भारतीय संस्कृति की उस मिट्टी में मिलते हैं, जिसमें कथा, भक्ति और भावनाओं की जड़ें बहुत गहरी हैं।

कथा जहां से छप्पन भोग (56 Bhog) की परंपरा शुरू हुई

इस कथा की शुरुआत होती है द्वापर युग के उस मधुर प्रसंग से, जब नन्हे कृष्ण, मां यशोदा की गोदी के लाल थे। बाल्यकाल में श्रीकृष्ण दिनभर आठ बार भोजन करते थे। हर प्रहर में कुछ न कुछ मां के हाथों से पाते थे। यानि चौबीस घंटे में आठ पहर और हर पहर एक भोग।

अब दृश्य बदलता है - एक दिन ब्रज में देवराज इंद्र की पूजा का आयोजन हो रहा था। कान्हा ने पूछा, 'इंद्र को खुश करने के लिए पूजा क्यों? जब पानी बरसाना तो बादलों का काम है, तो पूजा गोवर्धन पर्वत की होनी चाहिए, जो निस्वार्थ भाव से हमारे गायों और खेतों की रक्षा करता है।'

कृष्ण की बात ब्रजवासियों के मन को भा गई। उन्होंने इंद्र की जगह गोवर्धन की पूजा की।

इंद्र क्रोधित हो उठे। क्रोध में उन्होंने ब्रज पर सात दिन और सात रातें लगातार बारिश बरसाई। पूरा गांव डूबने लगा। तब श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया और ब्रजवासियों को उसकी छाया में शरण दी।

इन सात दिनों में कान्हा ने अन्न-जल तक ग्रहण नहीं किया।

जब इंद्र का अहंकार टूटा और बारिश थमी, तब मां यशोदा और ब्रजवासियों ने अपने लाडले के लिए आठ पहर × सात दिन = 56 प्रकार के व्यंजन बनाए और प्रेमपूर्वक अर्पित किए।

बस, वहीं से शुरू हुई छप्पन भोग की यह दिव्य परंपरा, जो आज भी जीवित है, भक्तों के मन में, रसोई में और मंदिरों की आरती में।

एक और कथा जो जोड़ती है राधा-कृष्ण (Radhe Krishna) से

एक मान्यता यह भी है कि राधा-कृष्ण एक दिव्य कमल पर विराजते हैं, जिसकी तीन परतों में कुल 56 पंखुड़ियां होती हैं। हर पंखुड़ी पर एक सखी विराजती है और केंद्र में स्वयं राधा-कृष्ण। इन 56 सखियों के लिए जो भोग तैयार होते हैं, वही भगवान को भी अर्पित किए जाते हैं। यह छप्पन भोग (56 Bhog) उस दिव्य रास का प्रतीक बन जाता है।

गोपियों की तपस्या और 56 भोग (56 Bhog) की तीसरी कथा

एक और कथा कहती है कि गोपियों ने मां कात्यायनी से मन्नत मांगी थी कि वे कृष्ण को पति रूप में पाएं। इसके लिए उन्होंने पूरे महीने ब्रह्म मुहूर्त में यमुना स्नान किया। जब संकल्प पूर्ण हुआ, तो उन्होंने मां कात्यायनी को 56 प्रकार के व्यंजन अर्पित किए। तभी से 56 भोग (56 Bhog) अर्पण की परंपरा भी शुरू मानी जाती है।

क्या-क्या होता है छप्पन भोग में?

56 भोग (56 Bhog) केवल संख्या नहीं, एक भावना है। यह एक रसपूर्ण प्रतीक है उस प्रेम और सेवा का, जो भक्ति की ऊंचाइयों को छूता है।

पारंपरिक मान्यताओं के अनुसार 56 भोग में शामिल होते हैं 20 प्रकार के मिष्ठान, 20 प्रकार के मेवे/सूखे व्यंजन और 16 प्रकार के नमकीन व्यंजन।

भगवान को लगने वाले छप्पन भोग (56 Bhog) में भक्त (भात), सूप (दाल), प्रलेह (चटनी), सदिका (कढ़ी), दधिशाकजा (दही शाक की कढ़ी), सिखरिणी (सिखरन), अवलेह (शरबत), बालका (बाटी), इक्षु खेरिणी (मुरब्बा), त्रिकोण (शर्करा युक्त), बटक (बड़ा), मधु शीर्षक (मठरी), फेणिका (फेनी), परिष्टाश्च (पूरी), शतपत्र (खजला), सधिद्रक (घेवर), चक्राम (मालपुआ), चिल्डिका (चोला), सुधाकुंडलिका (जलेबी), धृतपूर (मेसू), वायुपूर (रसगुल्ला), चंद्रकला (पगी हुई), दधि (महारायता), स्थूली (थूली), कर्पूरनाड़ी (लौंगपूरी), खंड मंडल (खुरमा), गोधूम (दलिया), परिखा, सुफलाढ़या (सौंफ युक्त), दधिरूप (बिलसारू), मोदक (लड्डू), शाक (साग), सौधान (अधानौ अचार), मंडका (मोठ), पायस (खीर), दधि (दही), गोघृत, हैयंगपीनम (मक्खन), मंडूरी (मलाई), कूपिका, पर्पट (पापड़), शक्तिका (सीरा), लसिका (लस्सी), सुवत, संघाय (मोहन), सुफला (सुपारी), सिता (इलायची), फल, तांबूल, मोहन भोग, लवण, कषाय, मधुर, तिक्त, कटु, अम्ल शामिल हैं। 

इनके अलावा जो विशिष्ट व्यंजन वर्णित हैं, उनमें शामिल हैं - मोदक, मालपुआ, सिखरिणी, अवलेह, सिता (इलायची), दधि, घृतपूर, पायस, वायुपूर, सुफला, मोहन भोग, तांबूल, और लवण (नमकयुक्त पदार्थ)।

इन सब व्यंजनों के पीछे केवल स्वाद नहीं, बल्कि सेवा, श्रद्धा और संकल्प की मिठास होती है।

हालांकि यह भी सत्य है कि भगवान कभी भोजन की मात्रा से नहीं, बल्कि भक्ति की भावना से तृप्त होते हैं। एक पत्ता तुलसी का हो या एक लोटा जल - यदि प्रेम से अर्पित किया जाए, तो प्रभु उसे भी छप्पन भोग मान लेते हैं।

अष्टयाम सेवा

मंदिरों में आज भी भगवान कृष्ण की सेवा अष्टयाम सेवा के रूप में होती है। यह वही प्रणाली है, जिसके अनुसार मां यशोदा दिन के आठ पहर अपने लाल को भोजन कराती थीं। अष्टयाम सेवा में भगवान की पूजा इस क्रम से होती है - मंगला, शृंगार, ग्वाल, राजभोग, उत्थापन, भोग, आरती, शयन।

हर सेवा में प्रभु को अलग भोग अर्पित किए जाते हैं, जिससे यह परंपरा अब भी जीवंत बनी हुई है।

छप्पन भोग (56 Bhog) केवल पकवान नहीं हैं, ये स्मृति हैं उस विश्वास की, जब ब्रजवासियों ने एक बालक को भगवान मान लिया। ये प्रतीक हैं उस स्नेह की, जब मां यशोदा ने अपने लाले को सात दिनों की भूख के लिए सात पहरों का प्रेम परोस दिया।

और जब हम आज भी भगवान को 56 भोग लगाते हैं, तो मानो उस प्रेम-रस की एक बूंद हमारी थाली में भी आ गिरती है।

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