Trump : अमेरिका नहीं, फ्रांस का फायदा करा गए ट्रंप
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डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) अमेरिका को फिर से महान बनाना चाहते हैं, लेकिन उनकी बयानबाजियों से नुकसान ज्यादा हो रहा है।
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) जब भी मंच पर आते हैं, कोई न कोई 'ऐतिहासिक' दावा जरूर कर देते हैं। हाल ही में उन्होंने कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच उनकी वजह से सीजफायर हुआ। ट्रंप (Trump) ने यह तक कहा कि उन्होंने व्यापार को एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया, 'अगर तुम शांति चाहते हो, तो व्यापार मिलेगा, नहीं तो कुछ नहीं।'
यह बयान जितना चौंकाने वाला था, उतना ही अविश्वसनीय और असहज भी। अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन के पूर्व अधिकारी माइकल रुबिन ने ट्रंप की इस टिप्पणी पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उनका कहना है कि ट्रंप (Trump) की इस 'बातूनी शांति नीति' से अमेरिका ने वो कुछ खो दिया है, जिसे अरबों डॉलर और वर्षों की रणनीतिक मेहनत से बनाया गया था - भारत का भरोसा।
लेकिन बात केवल भरोसे की नहीं है। अमेरिका पर बहुत कुछ खोने का खतरा मंडरा रहा है।
भारत की रक्षा नीति (Defence policy of India) में इस समय एक बदलाव की आहट सुनाई दे रही है। वर्षों से रूस पर रक्षा उपकरणों के लिए निर्भर रहने वाला भारत अब नई साझेदारियों की तलाश में है। अमेरिका के साथ बढ़ती रणनीतिक नजदीकियां कुछ समय पहले तक एक मजबूत भविष्य की ओर इशारा कर रही थीं, लेकिन लगता है कि ट्रंप के बयान ने इस रिश्ते में दरार डाल दी है।
ऐसे में सवाल उठ रहा है - क्या फ्रांस, भारत का अगला भरोसेमंद रक्षा साथी बन सकता है?
ट्रंप (Trump) का कथन भारत के लिए सिर्फ अटपटा नहीं था, बल्कि एक तरह से अपमानजनक और खतरनाक भी था। ट्रंप के बयान से आभास होता है कि उन्होंने ट्रेड को हथियार की तरह इस्तेमाल किया। इससे यह संकेत गया कि अमेरिकी रक्षा सप्लाई किसी भी वक्त दबाव के औजार में बदल सकती है।
माइकल रुबिन ने इस पर तीखी टिप्पणी की है। उनका कहना है कि अमेरिका ने भारत जैसे रणनीतिक साझेदार का भरोसा खो दिया है। उन्होंने लिखा कि इस तरह की बयानबाजी ने भारत जैसे शांतिप्रिय और आतंक से पीड़ित देश को उसी तराजू में रख दिया, जिसमें पाकिस्तान जैसे आतंक को पनाह देने वाले देश को रखा गया। यह न सिर्फ अनैतिक है, बल्कि खतरनाक भी।
उन्होंने यह भी जोड़ा कि ट्रंप (Trump) की बातें 'फ्रांस को महान और अमेरिका को कमजोर' बना रही हैं। यानी, भारत अब अमेरिकी हथियारों के बजाय फ्रांसीसी विकल्पों की ओर देखने लगा है।
रूस की लड़ाई और भारत की रणनीति
रूस के साथ भारत के दशकों पुराने रक्षा संबंध रहे हैं, लेकिन यूक्रेन युद्ध (Ukraine war) ने रूस की सप्लाई चेन पर बुरा असर डाला है। भारत को कई अरब डॉलर के विमान इंजन और हथियार समय पर नहीं मिल पाए। ऐसे में भारत को अपने रक्षा साझेदारों पर दोबारा सोचने की जरूरत पड़ी।
भारत ने पिछले कुछ वर्षों में अमेरिका की ओर कदम बढ़ाए थे - F-35 स्टेल्थ फाइटर जेट्स की बातचीत, साझा सैन्य अभ्यास, और रणनीतिक मंचों पर साथ आना इसी दिशा में थे। लेकिन ट्रंप (Donald Trump) जैसे नेता अगर अमेरिका की नीति को व्यापारिक सौदेबाजी में बदलते रहेंगे, तो भारत जैसे संप्रभु राष्ट्र को यह जोखिम भरा लगने लगता है।
जहां अमेरिका के साथ रिश्तों में दरार आई, वहीं फ्रांस ने भारत के साथ चुपचाप और स्थायी संबंध बनाए रखे। राफेल डील इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
हाल ही में भारत ने फ्रांस से स्कॉर्पीन क्लास पनडुब्बियों और फ्रिगेट्स पर भी बातचीत तेज की है। दोनों देशों के बीच 'स्ट्रैटजिक ऑटोनॉमी' का साझा आदर्श है अर्थात, बिना किसी दबाव के समान साझेदारी।
फ्रांस न सिर्फ हथियार बेचता है, बल्कि भारत को तकनीकी सहयोग और ट्रांसफर ऑफ टेक्नोलॉजी भी देता है, जो अमेरिका के मामले में अक्सर जटिल होता है।
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