IMF's conditions on Pakistan : IMF लोन पर 50 शर्त, फंस गया पाकिस्तान
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पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था कर्ज से चल रही है। भारत के साथ तनाव के दौरान भी उसे आईएमएफ से राहत मिली थी। हालांकि कर्ज पर IMF की कड़ी शर्तें (IMF's conditions on Pakistan) अब पाकिस्तान का दम घोटने लगी हैं।
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था इन दिनों एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है, जहां राहत के नाम पर मिलने वाला IMF का कर्ज (IMF Pakistan Loan) अब उसके लिए एक नई मुसीबत बन चुका है। देश को स्थिरता देने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से लिया गया 7 अरब डॉलर का बेलआउट पैकेज अब पाकिस्तान की रीढ़ पर बोझ बनता जा रहा है।
हाल ही में IMF ने पाकिस्तान के लिए अपनी शर्तों (IMF's conditions on Pakistan) की सूची और लंबी कर दी है - अब तक कुल 50 शर्तें लगाई जा चुकी हैं, जिनमें 11 नई शर्तें जोड़ी गई हैं। ये शर्तें सिर्फ आर्थिक सुधारों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इनका सीधा असर आम जनता की जेब, उद्योगों की नीतियों और सरकारी योजनाओं पर पड़ रहा है।
IMF के हिसाब से बनाना होगा बजट
इन नई शर्तों (IMF's conditions on Pakistan) में सबसे पहली और अहम मांग यह है कि पाकिस्तान को अपनी संसद से 17.6 ट्रिलियन रुपये का नया संघीय बजट पास कराना होगा। यह बजट IMF की तय नीतियों और मापदंडों के अनुरूप होना चाहिए और जून 2025 तक इसकी मंजूरी जरूरी है। इसके अलावा कृषि आय पर कर लगाने की नीति में भी प्रांतीय स्तर पर बदलाव करने होंगे। चारों प्रांतों को टैक्सपेयर्स की पहचान, रजिस्ट्रेशन, अनुपालन सुधार, कम्युनिकेशन अभियान और रिटर्न प्रोसेसिंग जैसे तकनीकी सुधारों को लागू करना होगा।
IMF ने पाकिस्तान से यह भी कहा है कि वह वित्तीय क्षेत्र की दीर्घकालिक योजना तैयार करे, जिससे भविष्य में देश की वित्तीय संस्थाओं और रेगुलेटरी सिस्टम की दिशा स्पष्ट हो। साथ ही, बिजली और गैस के दामों में भी बड़ा बदलाव किया जाएगा। हर साल बिजली के टैरिफ को cost recovery के आधार पर तय किया जाएगा, और इसी तरह गैस के दामों में भी हर छह महीने में समायोजन किया जाएगा। यानी जनता को अब सब्सिडी की उम्मीद छोड़ देनी होगी।
मुफ्त की बिजली नहीं चलेगी
सबसे कड़ी शर्तों (IMF's conditions on Pakistan) में से एक यह है कि संसद को अब एक ऐसा कानून बनाना होगा जिससे कैप्टिव पावर लेवी यानि निजी उद्योगों द्वारा इस्तेमाल की जा रही बिजली पर शुल्क को स्थायी बना दिया जाए, ताकि ये उद्योग राष्ट्रीय ग्रिड से बिजली खरीदने पर मजबूर हों।
इसी तरह एक और अहम शर्त (IMF's conditions on Pakistan) यह है कि सरकार को अब बिजली बिलों में जो debt servicing surcharge लगाया जाता है, उस पर 3.21 रुपये प्रति यूनिट की अधिकतम सीमा को खत्म करना होगा। यानी अब बिजली उपभोक्ताओं पर इससे कहीं ज्यादा बोझ पड़ सकता है।
IMF की मांग (IMF's conditions on Pakistan) है कि पाकिस्तान 2024 के अंत तक एक विस्तृत योजना बनाए जिसमें बताया जाए कि 2035 तक देश में विशेष तकनीकी क्षेत्रों और औद्योगिक पार्कों को दी जाने वाली सभी कर छूटें चरणबद्ध तरीके से खत्म कर दी जाएंगी।
यही नहीं, तीन साल से पुरानी इस्तेमाल की गई कारों के आयात पर लगी रोक भी हटाई जानी चाहिए। इसका सीधा असर देश के ऑटोमोबाइल सेक्टर और आम नागरिकों की जेब पर पड़ेगा।
बजट को लेकर IMF ने यह स्पष्ट किया है कि 17.6 ट्रिलियन रुपये के कुल बजट में से कम से कम 1.07 ट्रिलियन रुपये विकास योजनाओं के लिए रखे जाने चाहिए। यानी जितनी सख्तियां राजस्व और शुल्कों में हैं, उतनी ही उम्मीद विकासपरक योजनाओं में दिखानी होगी।
इन आर्थिक शर्तों के अलावा IMF ने अपनी रिपोर्ट में यह चिंता भी जताई है कि यदि भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव (India Pakistan Tension) बढ़ता है या हालात और बिगड़ते हैं, तो इससे पाकिस्तान के वित्तीय सुधारों, विदेशी मुद्रा स्थिति और पूरे बेलआउट कार्यक्रम की सफलता पर गंभीर खतरा मंडरा सकता है।
पाकिस्तान पर कुल कितना कर्ज है
दिसंबर 2024 तक पाकिस्तान पर कुल बाहरी कर्ज 131.1 बिलियन डॉलर (लगभग 37 हजार अरब पाकिस्तानी रुपये) से अधिक हो चुका है। यह पाकिस्तान की GDP के बड़े हिस्से को निगल रहा है। IMF के अनुसार, पाकिस्तान की GDP का करीब 6.82 प्रतिशत हिस्सा सिर्फ कर्ज की ब्याज अदायगी में चला जाता है। यानी जितनी कमाई होती है, उसका एक बड़ा हिस्सा केवल पुराने कर्ज चुकाने में लग जाता है।
यह भी ध्यान देने योग्य है कि पाकिस्तान ने अब तक IMF से कुल 25 बार कर्ज लिया है। इनमें सबसे हालिया 7 अरब डॉलर का बेलआउट 2024 में हुआ, जो खुद भी कई किस्तों में मिल रहा है और हर किस्त के साथ नई शर्तें जुड़ती जा रही हैं। इन शर्तों ने पाकिस्तान की आर्थिक संप्रभुता को लगभग गिरवी रख दिया है। हर नीति, हर सब्सिडी, हर बजट अब IMF की स्वीकृति के बिना आगे नहीं बढ़ सकता।
साफ है कि IMF की मदद अब पाकिस्तान के लिए एक दोधारी तलवार बन चुकी है। एक ओर यह देश को डिफॉल्ट से बचा रही है, तो दूसरी ओर इतनी सख्त शर्तें (IMF's conditions on Pakistan) थोप रही है कि पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था का दम घुटता नजर आ रहा है। आम जनता पर बोझ, उद्योगों पर नियंत्रण और राजनीतिक फैसलों पर सीमाएं - इन सबके बीच पाकिस्तान अब यह सोचने पर मजबूर है कि IMF से लिया गया यह कर्ज वाकई में राहत था या फिर एक और बड़ी गिरवी?
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