Pakistan : गरीबी या साजिश नहीं, पाकिस्तान के डीएनए में है आतंकवाद
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आतंकवाद को कई बार जोड़ा जाता है अशिक्षा और गरीबी से। हालांकि एक स्टडी बताती है कि पाकिस्तान (Pakistan) के केस में ये दोनों ही फैक्टर नहीं हैं। वहां आतंकवाद आम लोगों की सोच में भी बस चुका है।
बात सिर्फ AK-47 या आत्मघाती जैकेट की नहीं है। बात उस जमीन की है, जहां आतंकवाद एक विचार है, एक कारोबार है, एक राष्ट्रीय नीति का हिस्सा है। और उस जमीन का नाम है - पाकिस्तान (Pakistan)।
आज जब दुनिया आतंकवाद के खिलाफ लड़ रही है, तब भी पाकिस्तान (Pakistan) में आतंकी शिविर फल-फूल रहे हैं, आर्मी की छावनियों में ट्रेनिंग दी जा रही है, और आईएसआई (ISI) आतंकियों की भर्ती से लेकर ऑपरेशन तक की प्लानिंग कर रही है। इससे भी खतरनाक बात यह है कि वहां का पढ़ा-लिखा शहरी मध्यमवर्ग इन सबका नैतिक समर्थन करता है, जैसे यह सब कोई पवित्र जिहाद हो।
जब भी पाकिस्तान में आतंकवाद (Terrorism in Pakistan) की बात होती है, तो दुनिया की उंगलियां सबसे पहले वहां की गरीबी की ओर उठती हैं। वर्षों से यह समझा जाता रहा है कि भुखमरी, बेरोजगारी और शिक्षा की कमी वहां के नौजवानों को हथियार उठाने पर मजबूर करती है। लेकिन अब, जब भारत की ऑपरेशन सिंदूर (Operation Sindoor) जैसी सैन्य कार्रवाई और कश्मीर में आतंकी घुसपैठ की घटनाएं फिर सुर्खियों में हैं, तो एक पुराना लेकिन बेहद अहम अध्ययन सामने आकर इस सोच को चुनौती देता है।
साल 2012 में Princeton University के नेतृत्व में किए गए इस अध्ययन ने जो खुलासा किया, वह चौंकाने वाला था। पाकिस्तान (Pakistan) में आतंकवाद को सबसे अधिक समर्थन मिल रहा है वहां के पढ़े-लिखे, शहरी मध्यम वर्ग से। न कि गरीब तबके से, जैसा कि आम तौर पर मान लिया गया है। इस शोध में 6000 से अधिक लोगों का सर्वे हुआ - पंजाब से कराची तक और खैबर पख्तूनख्वा से बलूचिस्तान तक।
यह अध्ययन चार शीर्ष शोधकर्ताओं - Graeme Blair, C. Christine Fair, Neil Malhotra और Jacob Shapiro द्वारा किया गया था। पाकिस्तान के चारों प्रांतों - पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा के शहरी और ग्रामीण इलाकों से 6,000 से अधिक लोगों का सर्वे कर यह पता लगाया गया कि आतंकवाद को सबसे अधिक समर्थन किन लोगों से मिलता है।
परिणाम यह निकला कि आतंकवादी विचारधारा का असली पोषण गरीब नहीं, बल्कि वही वर्ग करता है जो एयर-कंडीशनर ड्रॉइंग रूम में बैठकर इस्लामी पहचान, पश्चिमी साजिश और कश्मीर मुक्ति जैसे नारों में गौरव ढूंढता है।
इस अध्ययन का एक और बड़ा निष्कर्ष यह था कि जिन इलाकों में आतंकवाद की मार सबसे ज्यादा पड़ी - जैसे पेशावर, कराची और क्वेटा जैसे शहरी केंद्र - वहां के गरीब लोग आतंकियों से सबसे ज्यादा नफरत करते हैं। वजह साफ है, आतंक के धमाके सबसे पहले इनकी ही झुग्गियों में गूंजते हैं, बम इनकी बसों में फटते हैं, और गोलियां इनकी दुकानों में चलती हैं।
शहरी मध्यवर्ग, जो अक्सर गेटेड कॉलोनियों और ऊंची दीवारों के भीतर रहता है, न सिर्फ इन हमलों से सुरक्षित रहता है, बल्कि उसके पास इतना समय और संसाधन होता है कि वह सोशल मीडिया, धार्मिक मंचों और राजनीतिक नारों के ज़रिए आतंकवाद की विचारधारा को सींच सके।
डिजिटल युग में उगता है आतंक का बीज
आज का आतंकवाद सिर्फ बारूद और बंदूक से नहीं, बल्कि मोबाइल ऐप्स, यूट्यूब चैनलों और वाट्सऐप यूनिवर्सिटीज के जरिए फल-फूल रहा है। आज के आतंकवाद को खाद-पानी केवल पाकिस्तान के मदरसों में नहीं, वहां के कॉलेज-विश्वविद्यालयों, ड्रॉइंग रूम की बहसों में भी मिल रहा है।
यही कारण है कि पाकिस्तान (Pakistan) की पढ़ी-लिखी, इंटरनेट-प्रेमी आबादी, खासकर शहरी मध्यम वर्ग, आतंकी संगठनों के लिए सबसे उपजाऊ जमीन बन गई है।
अध्ययन में यह भी सामने आया कि कश्मीर-केंद्रित आतंकी संगठनों को पाकिस्तान के मध्यम वर्ग से खासा नैतिक समर्थन मिलता है। वहां की जनता आतंकियों को आतंकी नहीं, स्वतंत्रता सेनानी तक मानती है।
आतंकवाद भी चलता है कॉरपोरेट मॉडल पर
आतंकी संगठन एक बहुस्तरीय ढांचे में काम करते हैं, जैसे कोई कॉरपोरेट कंपनी। एक तरफ लड़ाई लड़ने वाले 'फुट सोल्जर' होते हैं, जो कभी-कभी गरीब तबकों से आते हैं। लेकिन दूसरी ओर रणनीति बनाने वाले, फंडिंग मैनेज करने वाले और विचारधारा फैलाने वाले वही लोग होते हैं जो उच्च शिक्षा, डिजिटल दक्षता और आर्थिक स्थिरता के प्रतीक हैं।
9/11 के हमलावर हों या ISIS के ऑनलाइन प्रचारक, सभी अपेक्षाकृत सम्पन्न, शिक्षित और तकनीकी रूप से दक्ष पृष्ठभूमियों से आए थे।
आतंकवादी घटना कहीं भी हो, पीछे मिलता है पाकिस्तान (Pakistan)
9/11 (अमेरिका, 2001) : अल-कायदा के ज्यादातर ट्रेनिंग शिविर पाकिस्तान-अफगान सीमा पर थे। ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान के एबटाबाद में आर्मी अकादमी के पास पनाह दी गई थी।
26/11 (मुंबई, 2008) : हमले का मास्टरमाइंड हाफिज सईद आज भी पाकिस्तान में खुलेआम घूम रहा है। हमलावरों को पाकिस्तान में समुद्री रास्ते से ट्रेनिंग दी गई और ISI की मदद से भारत में दाखिल कराया गया।
लंदन अंडरग्राउंड बम धमाके (2005) : जांच में पाया गया कि हमलावरों में से कई ने पाकिस्तान के मदरसों में वक्त बिताया था और प्रशिक्षण लिया था।
पठानकोट, उरी, पुलवामा : इन सभी हमलों के पीछे जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे पाकिस्तान-स्थित समूहों का हाथ था।
आतंकवाद का मैनेजमेंट विभाग है ISI
पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI को अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों ने कई बार ‘Terror Incubator’ यानी आतंक की प्रयोगशाला) कहा है। ISI आतंकवादी संगठनों को Safe Houses, फंडिंग चैनल्स, और डिप्लोमैटिक कवर प्रदान करती है।
जब FATF (Financial Action Task Force) ने पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में डाला, तो रिपोर्ट में साफ लिखा गया था कि पाकिस्तान ने आतंक के खिलाफ राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं दिखाई है।
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