Debt on US : उधार लेकर घी पी रहा अमेरिका, यह कर्ज उसे डुबो देगा
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ट्रंप अमेरिका को फिर से महान बनाना चाहते हैं, लेकिन उनकी नीतियां उनके देश को कर्ज (Debt on US) के बोझ से दबा रही हैं। उनका 'One Big, Beautiful Bill' अमेरिका के लिए हो सकता है, लेकिन दुनिया के लिए यह One, Big, Worrisome Burden बन सकता है।
अमेरिका आज दुनिया का सबसे अमीर देश है, लेकिन उसकी आर्थिक सेहत अंदर से गंभीर चिंता का कारण बन चुकी है। उसकी कुल देनदारी यानी कर्ज (Debt on US) अब $36.2 ट्रिलियन (करीब 3,010 लाख करोड़ रुपये) पार कर चुकी है, जो देश की सालाना कमाई (GDP) का 122% है। हर तीन महीने में अमेरिका का कर्ज $1 ट्रिलियन यानी 83 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा बढ़ रहा है। ये आंकड़े न सिर्फ भारी हैं, बल्कि खतरनाक भी हैं।
इस वक्त अमेरिका की हालत ऐसी है कि उसके बजट का बड़ा हिस्सा सिर्फ कर्ज पर ब्याज चुकाने में जा रहा है, जो उसके रक्षा खर्च से भी ज्यादा हो चुका है। ऐसे में जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक नया टैक्स कट बिल (Trump new Tax) लेकर आए हैं, तो आर्थिक जानकारों की चिंता और गहराना लाजमी है। इस बिल को उन्होंने नाम दिया है - One, Big, Beautiful Bill (OBBB)।
ट्रंप का नया टैक्स बढ़ाएगा मुश्किल
यह बिल ट्रंप के 2017 के टैक्स कट्स को आगे बढ़ाता है, जिनका फायदा अमूमन अमीरों और बड़ी कंपनियों को मिला था। इस बार भी यही स्वरूप है - टैक्स में भारी छूट, जो आमदनी को कम करेगा जबकि सरकारी खर्च बढ़ता ही जा रहा है।
ओबीबीबी के पास होते ही अगले 10 सालों में अमेरिका पर 5 ट्रिलियन डॉलर तक का अतिरिक्त बोझ पड़ सकता है, यानी कुल कर्ज 12% (Debt on US) और बढ़ जाएगा। Moody’s जैसी रेटिंग एजेंसियों ने हाल ही में अमेरिका की क्रेडिट रेटिंग में गिरावट दी है और इसकी सबसे बड़ी वजह यही बढ़ता हुआ कर्ज (Debt on US) और सरकार की गैर-जिम्मेदार आर्थिक नीति है।
क्या है 'Debt Ceiling' और अमेरिका बार-बार इसे क्यों बढ़ाता है
अमेरिका में सरकार को संसद तय सीमा तक ही कर्ज लेने की इजाजत देती है, जिसे debt ceiling कहते हैं। लेकिन जब खर्च आमदनी से ज्यादा हो जाता है, तब सरकार को और उधार (Debt on US) लेना पड़ता है और उसके लिए इस सीमा को बार-बार बढ़ाना पड़ता है।
पिछले 60 सालों में अमेरिका ने 78 बार debt ceiling को बढ़ाया या सस्पेंड किया है। इसका मतलब साफ है - अमेरिका लगातार ज्यादा खर्च कर रहा है और उसे हर बार ज्यादा कर्ज (Debt on US) लेने की इजाजत लेनी पड़ती है।
अमेरिका कैसे उधारी लेता है
जब अमेरिकी सरकार को उधारी चाहिए होती है, तो वो बाजार में Treasury Bills (T-Bills), Notes और Bonds बेचती है। इनको खरीदने वाले निवेशक (देश या कंपनियां) सरकार को उधार देते हैं और बदले में ब्याज पाते हैं।
- T-Bills: 1 साल से कम की उधारी
- T-Notes: 2 से 10 साल
- T-Bonds: 20 से 30 साल
अब तक अमेरिकी सरकार को सबसे सुरक्षित कर्जदार माना जाता था, लेकिन अब जब Moody’s जैसी एजेंसियां डाउनग्रेड कर रही हैं, तो ये भरोसा भी डगमगाने लगा है।
अमेरिका का कर्ज कौन-कौन रखता है
- अमेरिका का 75% कर्ज (Debt on US) घरेलू निवेशकों के पास है। इसमें कंपनियां, पेंशन फंड्स और सरकार के अपने एजेंसियां शामिल हैं।
- करीब $4.6 ट्रिलियन कर्ज अमेरिकी रिजर्व बैंक (Fed) के पास है।
- 25% कर्ज विदेशी सरकारों व निवेशकों के पास है यानी लगभग $9 ट्रिलियन।
इसमें सबसे बड़ा हिस्सेदार जापान है ($1.13 ट्रिलियन), फिर ब्रिटेन ($779.3 अरब) और चीन ($765.4 अरब)। भारत के लिए यह अहम है क्योंकि चीन और जापान दोनों ने संकेत दिए हैं कि वे अमेरिका से व्यापार में दबाव डालने के लिए इस कर्ज (Debt on US) को एक 'हथियार' की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं।
ट्रंप का टैक्स कट और OBBB क्यों बढ़ाएगा संकट?
ट्रंप का नया बिल, 2017 में किए गए टैक्स कट्स को और आगे बढ़ाता है। इसका मतलब है कि सरकार की आमदनी घटेगी, लेकिन खर्च तो बना रहेगा।
जब सरकार की कमाई घटती है और खर्च बढ़ता है, तो उसे कर्ज लेकर काम चलाना पड़ता है। आज अमेरिका अपनी आमदनी का बड़ा हिस्सा सिर्फ कर्ज (Debt on US) के ब्याज चुकाने में खर्च कर रहा है।
टैक्स घटाने से पैसा तो कुछ लोगों की जेब में जाएगा, लेकिन कुल मिलाकर यह महंगाई को और बढ़ा सकता है यानी कम कमाई, ज्यादा खर्च और बढ़ती कीमतें - जिसे stagflation कहा जाता है।
OBBB से अमेरिकी नीतियों में और सख्ती
इस बिल में सिर्फ टैक्स नहीं घटाए गए हैं, बल्कि अवैध प्रवासियों के खिलाफ बड़े स्तर पर डिपोर्टेशन अभियान के लिए फंडिंग भी की गई है। इससे अमेरिका में श्रमिकों की कमी बढ़ सकती है, जो उत्पादन लागत को और महंगा बना देगा।
साथ ही, एक और विवादास्पद प्रस्ताव है, रेमिटेंस टैक्स (remittance tax) यानी अमेरिका से दूसरे देशों में भेजे जा रहे पैसों पर टैक्स लगाया जाएगा।
भारत को क्यों चिंता होनी चाहिए
भारत दुनियाभर से सबसे ज्यादा विदेशी रेमिटेंस पाने वाला देश है। वित्त वर्ष 2023-24 में भारत को $118.7 बिलियन की रेमिटेंस मिली, जिसमें से सबसे बड़ा हिस्सा - 27.7% यानी करीब $32.9 बिलियन सिर्फ अमेरिका से आया।
अगर OBBB के तहत अमेरिका रेमिटेंस पर टैक्स लगाता है तो वहां रहने वाले भारतीयों के लिए भारत में पैसे भेजना महंगा हो जाएगा।
इससे भारत की विदेशी मुद्रा भंडार (forex reserves) और रुपये की स्थिरता पर असर पड़ सकता है।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था, खासकर केरल और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में, जहां रेमिटेंस का बड़ा हिस्सा खर्च होता है, वहां खपत घट सकती है।
भारत के लिए और क्या मुश्किलें
मंदी और महंगाई का जोड़ा असर : अगर अमेरिका में स्टैगफ्लेशन बढ़ा, तो दुनिया भर में आर्थिक अस्थिरता फैलेगी। इसका असर भारत के शेयर बाजार, निर्यात और आयात पर पड़ेगा।
उधारी महंगी होगी : अमेरिकी कर्ज बढ़ने से दुनियाभर में ब्याज दरें ऊपर जा सकती हैं। भारत जैसे विकासशील देशों के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार से उधारी लेना महंगा होगा।
रुपया कमजोर हो सकता है : डॉलर मजबूत होगा, तो भारत में महंगाई और बढ़ सकती है क्योंकि तेल और अन्य आयात महंगे होंगे।
OBBB दिखने में ट्रंप की आर्थिक कामयाबी की झलक है, लेकिन असल में यह अमेरिका और दुनिया की अर्थव्यवस्था के लिए एक जोखिम भरा दांव है। अगर अमेरिका अपने खर्च और कर्ज (Debt on US) पर लगाम नहीं लगा पाया, तो न केवल उसकी खुद की आर्थिक साख कमजोर होगी, बल्कि भारत जैसे देशों को भी इसका बोझ उठाना पड़ेगा - चाहे वो डॉलर भेजने वाले प्रवासी हों या देश के आम उपभोक्ता।
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