Albania : क्यों 40 सालों तक जेल बन गया था यह देश

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कभी आपने सोचा है कि अगर कोई देश खुद ही तय कर ले कि अब वह दुनिया से कोई रिश्ता नहीं रखेगा - न व्यापार, न राजनीति, न बातचीत, न कूटनीति - तो उसके पीछे कैसी सोच होती है?

अल्बानिया (Albania) ने यही किया था। यूरोप का एक छोटा-सा देश, जिसने लगभग चार दशकों तक खुद को दुनिया से पूरी तरह अलग-थलग कर लिया था। 1946 से लेकर 1985 तक - कोई अंतरराष्ट्रीय व्यापार नहीं, कोई कूटनीतिक भागीदारी नहीं, यहां तक कि विदेशों से पत्राचार, यात्रा या संवाद भी एक प्रकार के अपराध की तरह देखा जाता था।

यह कोई प्राकृतिक आपदा नहीं थी, न ही किसी बाहरी दुश्मन की साजिश। इस निर्णय की बुनियाद रखी थी एनवर होक्सा (Enver Hoxha) ने - अल्बानिया के तानाशाह, जो 1946 से लेकर अपनी मौत (1985) तक देश के सर्वोच्च नेता रहे।

20वीं सदी के इतिहास में अल्बानिया (Albania) एक ऐसा अध्याय है, जो न सिर्फ राजनीतिक कट्टरता की मिसाल है, बल्कि यह भी दिखाता है कि जब कोई देश डर और वैचारिक हठधर्मिता के नाम पर खुद को दुनिया से काट लेता है, तो वहां आम लोगों की जिंदगी कैसी कैद बन जाती है।

स्टालिन की परछाईं में पनपी कट्टरता

एनवर होक्सा, स्टालिन के कट्टर अनुयायी थे। उन्होंने सोवियत संघ के शुरुआती कम्युनिस्ट मॉडल को ही एकमात्र क्रांतिकारी रास्ता माना और उस विचारधारा से कोई भी विचलन उन्हें धोखा लगता था। 1953 में स्टालिन की मृत्यु के बाद जब सोवियत संघ ने de-Stalinization की प्रक्रिया शुरू की - यानी स्टालिन की कठोर नीतियों से धीरे-धीरे दूरी बनानी शुरू की, तो होक्सा ने इसे विश्वासघात माना। 

होक्सा के आदेश पर अल्बानिया (Albania) ने सोवियत संघ से संबंध तोड़ लिए। इसके बाद उसने चीन (China) की ओर रुख किया, जहां माओत्से तुंग के नेतृत्व में क्रांतिकारी ऊर्जा दिखाई दी।

पर जैसे ही चीन ने भी थोड़ा लचीलापन दिखाना शुरू किया, खासकर अमेरिका से संबंध बनाकर, होक्सा को वह भी गद्दारी लगने लगी। 1978 में अल्बानिया (Albania) ने चीन से भी नाता तोड़ दिया और फिर उसने तय किया कि अब वह किसी भी देश, किसी भी संगठन, किसी भी विचारधारा पर भरोसा नहीं करेगा, सिवाय अपने खुद के।

किले में बदल गया Albania

होक्सा की विचारधारा का केंद्रबिंदु था आत्मनिर्भरता, पर वह आत्मनिर्भरता सिर्फ आर्थिक नहीं थी, वह मानसिक, वैचारिक और सांस्कृतिक अलगाव का दूसरा नाम बन चुकी थी। उनका मानना था कि हर बाहरी संपर्क - चाहे वह विचार हो, किताब हो, व्यक्ति हो या वस्तु - देश की शुद्ध क्रांतिकारी आत्मा को भ्रष्ट कर सकता है। उन्होंने पूरे देश को इस डर और कट्टरता की भावना से गढ़ा।

सरकार ने विदेशी नागरिकों के अल्बानिया (Albania) में आने पर रोक लगा दी। यहां तक कि एक विदेशी जहाज अगर किसी अल्बानियाई बंदरगाह के पास से गुजरता भी था, तो उस पर नजर रखी जाती थी। 

Albania के नागरिकों को विदेश यात्रा करने की अनुमति नहीं थी। रेडियो पर विदेशी स्टेशन सुनना अपराध माना जाता था। यहां तक कि टेलीविजन और अखबारों में भी विदेशी समाचारों को प्रतिबंधित कर दिया गया। स्कूलों और विश्वविद्यालयों में केवल वही पढ़ाया जाता था, जिसे सरकार ने ‘सत्य’ घोषित किया हो।

हर नागरिक के हिस्से में एक बंकर

इस अलगाव की सबसे भयानक प्रतीक थी अल्बानिया (Albania) की बंकर नीति। एनवर होक्सा ने देशभर में लगभग 1,73,000 कंक्रीट के बंकर बनवाए। ये बंकर हर खेत, हर पहाड़ी, हर गांव और शहर में नजर आते थे। विचार यह था कि कभी भी पूंजीवादी ताकतें हमला कर सकती हैं, और हर नागरिक को युद्ध के लिए तैयार रहना चाहिए। ये बंकर सिर्फ दुश्मनों से नहीं, बल्कि विचारों से भी डर का प्रतीक थे।

अल्बानिया (Albania) एक ऐसा देश बन चुका था, जिसे अपने ही नागरिकों से खतरा था। हर परिवार पर नजर रखी जाती थी। गुप्तचर एजेंसियां इतनी ताकतवर थीं कि बच्चों को भी सिखाया जाता था कि अगर उनके माता-पिता सरकार की आलोचना करें, तो वे उसकी रिपोर्ट करें। 

धर्म पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया था। चर्च, मस्जिदें और धार्मिक ग्रंथ - सब कुछ नष्ट कर दिए गए। 1967 में अल्बानिया (Albania) दुनिया का पहला ऐसा देश बन गया, जिसने खुद को औपचारिक रूप से नास्तिक राष्ट्र घोषित कर दिया।

तिजारत बंद, तकनीक बंद

इस पूरी व्यवस्था में जो सबसे ज्यादा पिसे, वो थे आम लोग। आर्थिक तंगी इतनी थी कि दुकानों में बुनियादी चीजें भी उपलब्ध नहीं थीं। एक आम नागरिक जीवन भर यही नहीं जान पाता था कि दुनिया में बाहर क्या हो रहा है। ना नई तकनीक आती थी, ना नई दवाएं, ना फैशन, ना फिल्में, ना किताबें।

अल्बानियाई जीवन एक समय के फ्रेम में फंसा रह गया था, जहां घड़ी की सूइयां रुक चुकी थीं। लोगों के सपनों का विस्तार केवल पार्टी के भाषणों और सरकारी कार्यक्रमों तक सीमित रह गया था।

1985 के बाद की करवट और आज का Albania

एनवर होक्सा की मृत्यु 1985 में हुई, लेकिन उनका बनाया हुआ तंत्र इतनी आसानी से ढहने वाला नहीं था। फिर भी 1991 आते-आते, जब सोवियत संघ खुद बिखर गया और पूर्वी यूरोप में क्रांति की लहर चल पड़ी, तब अल्बानिया (Albania) की जनता ने भी आवाज उठानी शुरू की। धीरे-धीरे कम्युनिस्ट शासन गिरा और देश ने लोकतंत्र की ओर कदम बढ़ाया।

आज का अल्बानिया (Albania) उस दौर से बहुत दूर आ चुका है। वह यूरोप की मुख्यधारा में लौटने की कोशिश कर रहा है, यूरोपीय यूनियन में शामिल होने की दिशा में प्रयास कर रहा है, और पर्यटन से लेकर तकनीक तक के क्षेत्र में खुल रहा है। 

लेकिन भूतकाल की छाया अभी भी पूरी तरह मिटी नहीं है। आज भी अल्बानिया (Albania) में हजारों बंकर पड़े हैं, कुछ खंडहर हो चुके हैं, कुछ को संग्रहालय बना दिया गया है।

लोगों की स्मृति में वो दौर अब भी एक ऐसा घाव है, जो कभी भुलाया नहीं जा सकता। एक ऐसा अतीत, जब पूरा देश एक वैचारिक जेल बन गया था।

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