Mecca : मक्का की मिट्टी में दबा एक भारतीय परिवार का अदृश्य इतिहास
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सऊदी अरब के मक्का (Mecca) में स्थित 'केयी रुबात' (Keyi Rubath) गेस्ट हाउस का मुआवजा 50 वर्षों से भारत के दो खानदानों के बीच विवाद की वजह बना हुआ है। जानिए इस अनसुलझी विरासत और उससे जुड़ी ऐतिहासिक कहानी।
हज यात्रा का समापन जैसे ही होता है, मक्का (Mecca) की गलियों से एक पुराना किस्सा फिर से भारत में सुर्खियों में आ जाता है - यह किस्सा आध्यात्मिकता या तीर्थ की भावना से नहीं, बल्कि एक 50 साल पुराने 'विरासत विवाद' से जुड़ा है।
19वीं सदी के एक नामी मलाबारी व्यापारी मयन्कुट्टी केयी (Mayankutty Keyi) ने मक्का (Mecca) में भारतीय हज यात्रियों के लिए 'केयी रुबात' नामक एक आलीशान गेस्ट हाउस बनवाया था। कहा जाता है कि यह इमारत मस्जिद-ए-हरम (Masjid al-Haram) से महज कुछ कदम की दूरी पर स्थित थी।
इसके निर्माण में मलाबार से लाकर लकड़ी लगाई गई थी। इसमें 22 कमरे और कई बड़े हॉल थे। यह उस दौर की बात है जब सऊदी अरब तेल के खजाने से दूर, एक साधारण देश हुआ करता था और मक्का (Mecca) की अर्थव्यवस्था में भारतीय मुसलमानों का खास योगदान था।
लेकिन 1971 में मक्का (Mecca) के पुनर्विकास के चलते इस इमारत को तोड़ा गया। बदले में सऊदी सरकार ने 14 लाख रियाल (आज के हिसाब से करीब $3.7 लाख) का मुआवजा अपने खजाने में जमा कर लिया, लेकिन तब यह कह दिया गया कि किसी वैध उत्तराधिकारी की पहचान नहीं हो सकी है।
मुआवजा बना विवाद की जड़
अब आधी सदी बाद यही रकम भारत के दो परिवारों के बीच कानूनी और भावनात्मक लड़ाई का कारण बन गई है। कुछ लोगों के अनुसार आज ब्याज और मुद्रास्फीति को जोड़कर मुआवजे की रकम एक अरब डॉलर तक पहुंच सकती है।
मयन्कुट्टी केयी की पैतृक शाखा 'केयी परिवार' और उनकी शादीशुदा जिंदगी से जुड़ा 'अरक्कल खानदान' - दोनों इस मुआवजे पर दावा ठोक रहे हैं। दोनों पक्ष अपने-अपने तरीके से खुद को मयन्कुट्टी का सच्चा वारिस बता रहे हैं।
विरासत या वक्फ संपत्ति (Waqf Property)?
यहां एक और पेच है - केयी रुबात को वक्फ संपत्ति माना गया था, यानी इस्लामी व्यवस्था के अनुसार इसे सिर्फ संचालित किया जा सकता है, बेचा या व्यक्तिगत तौर पर लिया नहीं जा सकता। इससे स्थिति और उलझ जाती है क्योंकि सऊदी कानून भारतीय वंशानुक्रम की पद्धतियों, विशेषकर केरल की मातृसत्तात्मक परंपराओं को नहीं मानता।
जब 2011 में अफवाहें फैलीं कि मुआवजा करोड़ों में है, तो केरल के कन्नूर जिले में 2500 से ज्यादा लोग अचानक सामने आ गए, जिनमें से कुछ ने दावा किया कि उनके पूर्वजों ने मयन्कुट्टी को पढ़ाया था, तो किसी ने कहा कि उनके परिवार ने इमारत के लिए लकड़ी दी थी।
इस अफवाह के बीच धोखाधड़ी भी शुरू हुई। 2017 में कुछ ठग खुद को केयी परिवार का वारिस बताकर स्थानीय लोगों से पैसे वसूलने लगे, यह कहकर कि उन्हें मुआवजे का हिस्सा दिलवाया जाएगा।
कुछ वंशजों का सुझाव है कि विवाद खत्म करने के लिए सऊदी सरकार इस रकम से एक नया 'रुबात' बनाए, ताकि हज (Hajj) यात्रियों को उसी भावना से सेवा मिल सके, जिसके लिए मयन्कुट्टी केयी ने इसे बनवाया था। लेकिन अन्य लोग इसे खारिज करते हैं, और इसे निजी संपत्ति बताते हैं, जिसका मुआवजा कानूनी वारिसों को मिलना चाहिए।
केयी रुबात की कहानी मक्का (Mecca) और मलाबार को जोड़ने वाली एक अद्भुत कड़ी है - एक ऐसा किस्सा जिसमें व्यापार, धर्म, विरासत और पहचान के कई रंग हैं। लेकिन जब तक कोई समाधान नहीं निकलता, यह कहानी भारत और सऊदी अरब के बीच इतिहास की किसी धुंधली गली में ही गुमशुदा रहेगी।
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