Earthquake : भारत के प्राचीन मंदिरों को क्यों नहीं हिला पाया भूकंप
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uplive24.com पर जानिए कि कैसे भारत के प्राचीन मंदिर प्राकृतिक आपदाओं को झेलते हुए आज भी खड़े हैं, कौन-सी तकनीक इस्तेमाल होती थी इनमें?
जब सत्रहवीं सदी में दक्षिण भारत में एक भीषण भूकंप (Earthquake) आया, तो कई किले और मंदिर जमींदोज़ हो गए। लेकिन उसी दौरान एक मंदिर ऐसा भी था, जो बिना किसी खरोंच के खड़ा रहा। इसे भगवान का चमत्कार समझा गया। लेकिन जब वैज्ञानिकों ने इसकी पड़ताल की, तो सामने आई प्राचीन भारतीय इंजीनियरिंग की एक अद्भुत मिसाल। यह है रामप्पा मंदिर (Ramappa Temple)।
तेलंगाना में स्थित यह मंदिर आज न सिर्फ एक धार्मिक स्थल है, बल्कि भूकंपरोधी निर्माण तकनीक (Earthquake resistant architecture) का एक बेहतरीन उदाहरण भी है। 800 साल पुराने इस मंदिर को बनाने में जिस तकनीक का इस्तेमाल किया गया, वह थी सैंडबॉक्स टेक्नोलॉजी (Sandbox Technology)। इस पद्धति में मंदिर की नींव के नीचे रेत भरी जाती है ताकि भूकंप (Earthquake) के झटकों की ऊर्जा वहीं सोख ली जाए और संरचना को कोई नुकसान न हो।
यह मंदिर काकतीय राजवंश (Kakatiya Dynasty) के शासनकाल में बनवाया गया था। पर सबसे दिलचस्प बात यह है कि यह मंदिर अपने किसी देवता या राजा के नाम पर नहीं, बल्कि इसके शिल्पकार रामप्पा (Ramappa) के नाम पर जाना जाता है। यह भारत का इकलौता मंदिर माना जाता है जो अपने वास्तुकार के नाम से पहचाना जाता है।
इस मंदिर का महत्व सिर्फ एक राज्य तक सीमित नहीं, बल्कि देश-विदेशों तक फैला हुआ है। संयुक्त राष्ट्र ने तमाम तरह के आर्कियोलॉजिकल सर्वे के बाद साल 2021 में इसे विश्व धरोहर घोषित किया था।
इस मंदिर की खासियत यहीं खत्म नहीं होती। इसमें उपयोग किए गए पत्थर इतने हल्के हैं कि वे पानी में तैर सकते हैं। ऐसा माना जाता है कि इन पत्थरों को लकड़ी के बुरादे और अन्य जैविक पदार्थों के मिश्रण से तैयार किया गया था। मंदिर की ऊंचाई वाले हिस्सों में इन पत्थरों के इस्तेमाल से उसका भार कम हुआ और वह भूकंप (Earthquake) के झटकों को सहन कर सका।
इतिहासकारों के अनुसार भारत में कई मंदिर ऐसे हैं जो सदियों से भूकंपों (Earthquake) को झेलते हुए खड़े हैं - जैसे कि कोणार्क सूर्य मंदिर (Konark Sun Temple) और चोल व पांड्य राजाओं द्वारा बनवाए गए मंदिर। ये सभी इस बात का प्रमाण हैं कि प्राचीन भारत में Earthquake Engineering कोई कल्पना नहीं, बल्कि वैज्ञानिक समझ पर आधारित परंपरा थी।
इतना ही नहीं, साल 1292 में जब मशहूर यात्री मार्को पोलो (Marco Polo) भारत आए, तो उन्होंने रामप्पा मंदिर को मंदिरों की आकाशगंगा में एक चमकता हुआ सितारा कहा।
इस मंदिर में इस्तेमाल बेहद कठोर बैसाल्ट पत्थरों पर नायाब नक्काशी है। विशेषज्ञ इस बात से हैरान हैं कि जिस बैसाल्ट पत्थर को आज मशीनों से काटने में मशक्कत करनी पड़ती है, उस समय इन पत्थरों पर ऐसी बारीक नक्काशी कैसे की गई होगी।
भूकंप (Earthquake) से बचने की ईरानी तकनीक
विश्व इतिहास में भी इस तरह की मिसालें हैं। जैसे कि ईरान (Iran) की प्राचीन इमारतें, जो Base Isolation Technology पर आधारित थीं। इनकी नींव और जमीन के बीच में महीन मिट्टी की परत डाली जाती थी, जिससे झटका सीधे इमारत पर नहीं आता था।
चीन की फोर्बिडन सिटी (Forbidden City of China) भी इसी तरह की तकनीक का उदाहरण है। यह प्राचीन संरचना सदियों से जस की तस खड़ी है।
सन 1406 में बनी फोर्बिडन सिटी पर हुई रिसर्च में पाया गया कि यह संरचना दोगोंग (Dougong) शैली से बनी है। यह एक बेजोड़ भूकंपरोधी तकनीक है। दरअसल फोर्बिडन सिटी की इमारत पूरी तरह लकड़ी की है। इससे इसका वजन बहुत कम है।
दोगोंग शैली में लकड़ी के खंभों पर बीम और छत टिकाई जाती हैं। ये खंभे ना तो गाड़े जाते हैं और ना ही किसी चीज़ से ज़मीन पर पक्के तौर पर जोड़े जाते हैं। इमारत की छत, बीम और खंभे आपस में परत दर परत खांचे में ऐसे फंसाए जाते हैं कि वे कितनी भी तेज़ी से हिलें, लेकिन वापस अपनी जगह पर आ जाएं।
इस निर्माण शैली में कोई भी चीज़ पक्के तौर पर चिपकाई या जोड़ी नहीं जाती। इमारत का हर अंग ऐसी कुशलता से एक-दूसरे में फंसाया जाता है कि सारे जोड़ हिल तो सकते हैं, लेकिन कोई भी हिस्सा अलग नहीं हो पाता। और, इसीलिए इन इमारतों में गजब का लचीलापन रहता है। रिसर्चर्स ने पाया है कि 600 साल पुरानी फोर्बिडन सिटी रिक्टर स्केल (Richter Scale) पर अधिकतम तीव्रता यानी 10 अंक का भूकंप (Earthquake) भी झेल सकती है।
बृहत संहिता में भूकंप से बचाव का उपाय
जापान के प्राचीन पैगोडा (Pagoda Temples) भी Shinbashira Technology का प्रमाण हैं। इन बहुमंजिला संरचनाओं के बीचों-बीच एक मजबूत खंभा होता था जो हर मंजिल को जोड़े रखता था और भूकंप के समय कंपन को नियंत्रित करता था।
माचू पिच्चू (Machu Picchu, Peru) भी एक शानदार उदाहरण है जहां प्राचीन ज्ञान और भूकंपरोधी वास्तुकला का मेल देखने को मिलता है।
भारत की बात करें तो वैदिक साहित्य और ग्रंथों में भी ऐसे तकनीकी ज्ञान के उल्लेख मिलते हैं। बृहत संहिता (Brihat Samhita) में भूकंप से बचाव के उपाय दिए गए हैं, और उपनिषदों में द्रविड़ शैली के मंदिर निर्माण का भी वर्णन मिलता है।
इन सब उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि Traditional Earthquake Engineering, Ancient Anti-Seismic Technology कोई नई अवधारणा नहीं है। रामप्पा मंदिर इसका जीता-जागता प्रमाण है, जहां आस्था और विज्ञान का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।
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