Gita Gopinath : कौन हैं दुनिया को अर्थशास्त्र सिखाने वाली भारत की गीता?
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गीता गोपीनाथ (Gita Gopinath) ने लेडी श्रीराम कॉलेज और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से शुरू कर IMF तक का सफर तय किया। अब वे हार्वर्ड यूनिवर्सिटी लौट रही हैं। uplive24.com पर जानिए उनके प्रेरणादायक जीवन की पूरी कहानी।
एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी लड़की, जिसने मैसूर के स्कूल से पढ़ाई शुरू की और फिर दिल्ली की यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र को समझा - आज वह नाम दुनिया के सबसे बड़े आर्थिक मंचों पर गूंजता है। नाम है गीता गोपीनाथ (Gita Gopinath)।
अगस्त 2025 में गीता (Gita Gopinath) अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की पहली डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर के पद से विदा लेकर फिर से हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की क्लासरूम में लौटेंगी। लेकिन यह वापसी सिर्फ शैक्षणिक नहीं है - यह एक दौर पूरा होने जैसा है। सफर जो भारत की जमीन से शुरू होकर वैश्विक अर्थनीति के शिखर तक पहुंचा और अब अपनी जड़ों की ओर लौट रहा है।
Gita Gopinath की कहानी उन तमाम भारतीय छात्रों के लिए मिसाल है जो दिल्ली यूनिवर्सिटी (DU) की लाइब्रेरी में बैठकर अर्थव्यवस्था के सिद्धांतों से जूझते हैं, सपने देखते हैं, और सोचते हैं कि क्या कभी वे भी कुछ बड़ा कर पाएंगे। गीता का जवाब है, हां।
बचपन मैसूर में, पढ़ाई दिल्ली में
8 दिसंबर 1971 को कोलकाता में जन्मी गीता का बचपन कर्नाटक के मैसूर में बीता। नर्मला कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ाई के दौरान ही उनमें पढ़ने का गहरा लगाव दिखने लगा था। लेकिन उनकी सोच को दिशा दिल्ली ने दी। लेडी श्रीराम कॉलेज (LSR) में जब उन्होंने अर्थशास्त्र की पढ़ाई शुरू की, तो शिक्षकों ने उनमें कुछ अलग देखा - ध्यान से सुनने वाली, बारीकियों पर पकड़ रखने वाली और बेहद अनुशासित छात्रा।
इसके बाद गीता (Gita Gopinath) ने दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (DSE) से मास्टर्स किया। यही वह वक्त था जब उन्होंने किताबों से बाहर की अर्थव्यवस्था को समझना शुरू किया। भारत में मिली इस मज़बूत बुनियाद ने उन्हें आगे के सफर के लिए तैयार कर दिया।
हार्वर्ड से मिली Gita Gopinath को पहचान
भारत से दो डिग्री लेकर गीता अमेरिका पहुंचीं। पहले यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन और फिर प्रिंसटन यूनिवर्सिटी से पीएच.डी. की। वहां उन्हें जिन प्रोफेसरों से पढ़ने का मौका मिला, वे खुद दुनिया के जाने-माने अर्थशास्त्री थे - बेन बर्नांके, केनेथ रोगॉफ और पियरे-ओलिवियर गोरिंचास। गीता (Gita Gopinath) की थीसिस थी - Three Essays on International Capital Flows।
शैक्षणिक करियर की शुरुआत उन्होंने शिकागो यूनिवर्सिटी से की, लेकिन असली पहचान उन्हें हार्वर्ड ने दी। यहां वे प्रोफेसर बनीं और अंतरराष्ट्रीय व्यापार और विनिमय दरों पर कई अहम शोध किए। उनके विचारों ने पारंपरिक सोच को चुनौती दी। वहीं वह अमेरिकी आर्थिक शोध संस्थानों में भी नेतृत्वकारी भूमिका में रहीं। National Bureau of Economic Research में को-डायरेक्टर, American Economic Review की संपादक और Federal Reserve Bank of Boston की विजिटिंग स्कॉलर रहीं। भारत से उनका रिश्ता कभी टूटा नहीं। कुछ समय तक वे केरल के मुख्यमंत्री की मानद आर्थिक सलाहकार भी रहीं।
2018 में गीता गोपीनाथ IMF की मुख्य अर्थशास्त्री बनीं। यह पद पाने वाली वह पहली महिला और रघुराम राजन के बाद दूसरी भारतीय थीं। जब पूरी दुनिया महामारी की चपेट में थी, तब गीता (Gita Gopinath) ने नीतियों का ऐसा खाका तैयार किया जिसने सिर्फ आर्थिक नहीं, मानवीय असर भी डाला।
उनका 'Pandemic Paper' केवल शोध नहीं था, वह WHO, IMF, World Bank और WTO को एकसाथ लाने वाली एक पहल थी, जिसने गरीब देशों को वैक्सीन तक पहुंच दिलाने में मदद की।
इसी काम के दम पर दिसंबर 2021 में उन्हें IMF की First Deputy Managing Director बनाया गया। इस भूमिका में वे नीतियों से लेकर शोध और वैश्विक वार्ताओं तक हर मोर्चे पर सक्रिय रहीं। IMF की प्रमुख क्रिस्टालिना जॉर्जीवा ने उन्हें उस समय की 'सबसे उपयुक्त व्यक्ति' कहा था।
अब जब गीता गोपीनाथ (Gita Gopinath) हार्वर्ड यूनिवर्सिटी लौटने जा रही हैं, तो उनका अनुभव नए छात्रों के लिए वह खजाना होगा जो किताबों में नहीं मिलता। यह वापसी सिर्फ एक प्रोफेसर की नहीं, एक नीति-निर्माता की है, जो दुनिया को देख-समझ कर लौटी है।
दिल्ली यूनिवर्सिटी की क्लासरूम में आज कोई लड़की किसी कोने में बैठकर सोच रही होगी कि क्या उसकी पहुंच भी हार्वर्ड तक हो सकती है। गीता की कहानी बताती है - हां, हो सकती है।
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