Samosa : भारत में कहां से आया समोसा और उसमें कैसे भरा आलू
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समोसा (Samosa) भारत का नहीं, बल्कि फारस और मध्य एशिया से आया था। uplive24.com जानिए कैसे यह मांस से भरा शाही नाश्ता बन गया हर भारतीय की थाली का स्टार, और कैसे इसमें आलू ने ली कीमे की जगह।
भारत के हर गली-नुक्कड़, चाय की दुकान और स्कूल-कॉलेज की कैंटीन में एक चीज कॉमन मिलती है, समोसा (Samosa)। सुनते ही मुंह में पानी आ जाता है। बाहर से कुरकुरा, अंदर से गर्म और मसालेदार। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये स्वादिष्ट तिकोना स्नैक (Samosa) वाकई में भारतीय है? या फिर, बाकी चीज़ों की तरह इसका भी कोई विदेशी रिश्ता है?
समोसे (Samosa) की कहानी शुरू होती है मध्य एशिया और फारस से। फारसी में इसे संबूसा (Sambusa) कहा जाता था, जिसका अर्थ होता है 'बराबर कोणों वाला' या 'त्रिकोणीय आकार'। इतिहासकारों के मुताबिक, यह डिश 10वीं से 13वीं सदी के बीच सिल्क रूट के ज़रिए भारत पहुंची, जब फारसी व्यापारी, योद्धा और दरबारी भारत आए।
प्रसिद्ध इतिहासकार और खाद्य विशेषज्ञ के.टी. आचाया (K.T. Achaya) के अनुसार, समोसा मूलतः फारसी और मध्य एशियाई व्यंजनों का हिस्सा था और इसे भारत की मुस्लिम रसोई में पेश किया गया। इसका उल्लेख कई ऐतिहासिक दस्तावेजों में मिलता है।
अमीर खुसरो (Amir Khusrau), 13वीं सदी के इंडो-फारसी कवि और विद्वान, समोसे (Samosa) का जिक्र करते हैं जिसमें मांस, प्याज और घी का भरावन होता था।
इब्न बतूता, 14वीं सदी के प्रसिद्ध यात्री, अपने यात्रा वर्णन में समोसे (Samosa) जैसी डिश का उल्लेख करते हैं जिसमें कीमा, बादाम, अखरोट, पिस्ता और मसालों का मिश्रण होता था जिसे गेहूं की रोटी में भरकर घी में तला जाता था।
निम्मतनामा, एक फारसी पांडुलिपि जो 15वीं सदी में मालवा के सुल्तान घियासुद्दीन शाह के लिए तैयार की गई थी, उसमें भी समोसे (Samosa) जैसे स्नैक्स का उल्लेख है।
अइन-ए-अकबरी (Ain-i-Akbari), जो अकबर के दरबारी अबुल फज़ल द्वारा लिखा गया था, उसमें एक व्यंजन 'कुतब' का जिक्र है जिसे आम जनता 'संबूसा' कहती थी।
इन सब ऐतिहासिक तथ्यों से यह बात स्पष्ट होती है कि समोसा (Samosa) भारत का मूल व्यंजन नहीं है, लेकिन भारत आने के बाद इसने भारतीय स्वाद और परंपरा को इतनी गहराई से अपनाया कि अब इसे पूरी तरह 'अपना' मान लिया गया है।
भारत में Samosa का रूप कैसे बदला?
मूल समोसा जिस फारसी रूप में भारत आया था, वह आमतौर पर मांस (खासकर कीमा) और सूखे मेवों से भरा होता था और घी में तलकर परोसा जाता था। यह शाही दरबारों का हिस्सा था और आम जनता की पहुंच से दूर था।
लेकिन भारत जैसे विविधताओं वाले देश में जहां शाकाहारी भोजन एक बड़ी परंपरा है, वहां मांस की जगह धीरे-धीरे आलू, मटर, गोभी और मसालेदार सब्ज़ियों ने ले ली। यही वो बदलाव था जिसने समोसे (Samosa) को हर तबके, हर धर्म, हर जाति और हर आयु वर्ग के लिए उपयुक्त बना दिया।
ब्रिटिश काल के दौरान भारत में आलू की खेती को बढ़ावा मिला और यह जल्दी ही एक आम सब्जी बन गया। यही आलू समोसे के भीतर भरा गया और यह संस्करण इतना लोकप्रिय हुआ कि आज इसे ही 'असली समोसा' माना जाने लगा।
स्वाद में विविधता
भारत में समोसे ने हर राज्य, हर संस्कृति के स्वाद को अपने अंदर समेट लिया। हैदराबाद में इसे लुखमी कहा जाता है - मोटा कवर, और अक्सर मीट भरा होता है।
बंगाल में इसका नाम शिंगाड़ा है - हल्का मीठा-तीखा, मूंगफली और आलू से भरा हुआ।
गुजरात में छोटे आकार के समोसे चलते हैं, जिनमें प्याज, स्वीट कॉर्न, हरी मटर जैसी चीजें भरी जाती हैं।
दक्षिण भारत में समोसे में गोभी, गाजर, करी पत्ते जैसी चीजें भरी जाती हैं और इसका स्वाद बिल्कुल अलग होता है।
गोवा में पुर्तगाली प्रभाव से बना चमूचा है, जिसमें बीफ, चिकन या पोर्क भरा होता है।
मुंबई और दिल्ली जैसे शहरों में पंजाबी स्टाइल समोसे प्रचलित हैं - तेज मसाले, कसूरी मेथी और सॉस या चटनी के साथ।
आधुनिक युग में समोसे की जगह
आज जब स्वास्थ्य मंत्रालय (Health Ministry) चेतावनी बोर्ड लगाने की बात करता है कि किस खाने में कितनी कैलोरी और फैट है, तब समोसे (Samosa) पर सवाल उठना लाजिमी है। पर क्या स्वाद और भावना का कोई पोषण चार्ट होता है?
समोसा अब सिर्फ एक स्नैक नहीं, बल्कि भारतीय जीवनशैली का हिस्सा बन चुका है। यह नॉस्टेल्जिया है, एक स्मृति है - बचपन के टिफिन की, कॉलेज की कैंटीन की, पहली डेट की, या ट्रेन के सफर की।
समोसे ने भारत को अपनाया और भारत ने उसे वह दर्जा दिया, जो शायद उसकी जन्मभूमि भी न दे पाती।
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