कहां रहती है पितरों की आत्मा, क्या Pitru Paksha में उनसे मिल सकते हैं?
क्या आत्मा का वजन होता है? जानें धर्म, विज्ञान और 21 ग्राम का रहस्य
क्या आत्मा होती है, अगर हां तो कहां रहती है? क्या हमारे पुरखे हम पर नजर रखे हुए हैं? पितृपक्ष (pitru paksha) में अर्पित की गई चीजें उन तक कैसे पहुंचती हैं?
जब भी परिवार में किसी नए सदस्य का जन्म होता है, तो लोग अक्सर उन्हें याद करने लगते हैं, जो दूर चले गए। 'इसका चेहरा बिल्कुल तुम्हारे दादा जैसा दिख रहा है!' लोग चले जाते हैं और यादें छूट जाती हैं!
इन यादों को लोग किसी बच्चे के चेहरे में, किसी सामान में और कई बार सपनों में भी तलाशते हैं। ऐसा सपना तो आपको भी आता होगा, जिसमें कोई ऐसा दिखता होगा, जिसकी मौत हो चुकी है! और इन सपनों को बड़े-बुजुर्ग अर्थ भी बताते हैं। आमतौर पर कहा जाता है कि जो सपने में आए, वह कोई बात कहना चाहते थे।
लेकिन जो मर गया, वह क्या कहना चाहेगा? या फिर वाकई उसे कुछ कहना था? क्या मौत के बाद जीवन होता है और आत्मा अपने पुराने परिवार में किसी नए सदस्य के रूप में जन्म लेना चाहती है या फिर वह सपने दिखाती है?
भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को ज्ञान दिया,
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।।
यानी, आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकते, अग्नि जला नहीं सकती, जल गीला नहीं कर सकता और वायु इसको सुखा नहीं सकती।
सनातन में माना गया है कि शरीर के खत्म हो जाने पर भी आत्मा अमर बनी रहती है। यह आत्मा पितृलोक में रहती है या दूसरे शरीर में जन्म लेती है। आत्मा के अस्तित्व और पुनर्जन्म को वेदों में भी स्वीकार किया गया है। सबसे प्राचीन वेद ऋग्वेद के एक श्लोक में अग्निदेव से प्रार्थना की जाती है - हे अग्नि, इस मृत शरीर को जलाकर इसकी आत्मा को पितृलोक ले जाओ। ईशोपनिषद में बताया गया है कि आत्मा की गति मन से भी तेज है। हालांकि आत्मा को परिभाषित करना कठिन है।
क्या आत्माओं से संपर्क संभव है?
Duncan MacDougall नाम के अमेरिकी वैज्ञानिक ने आत्मा का पता लगाने के लिए एक प्रयोग किया था, जो बुरी तरह नाकाम रहा।
लंदन के प्रफेसर एफएच मायर्स की किताब 'Human personality and its survival after bodily death' के मुताबिक, बिना स्थूल शरीर भी आत्मा जीवित रहती है। अनुकूल परिस्थितियों में मृत व्यक्ति की आत्मा से संपर्क किया जा सकता है। यह संपर्क कोई इंसान करता है या कभी दिवंगत आत्मा से सीधे ही हो जाता है।
स्वामी विवेकानंद के गुरु भाई स्वामी अभेदानंद ने अपनी किताब 'Life Beyond Death' में दावा किया है कि उन्होंने कई आत्माओं को देखा और उनसे बातचीत की। उन्होंने बताया कि जीवित रहने पर वह शख्स जिस तरह के कपड़े पहनता था, आत्मा भी उसी तरह के कपड़े पहनकर आई।
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इन बातों से मान भी लें कि आत्मा है, तो रहती कहा है?
'पद्मपुराण' के सृष्टिखंड में भीष्म-पुलस्त्य संवाद काफी प्रश्नों के जवाब देता है। भीष्म पितामह को पुलस्त्य ऋषि बताते हैं, 'स्वर्ग में पितरों के सात गण हैं। इनमें तीन तो मूर्तिरहित और चार मूर्तिमान हैं। मूर्तिरहित पितृगण वैराज प्रजापति की संतान हैं। पितरों की लोकसृष्टि भी है। सोमपथ, विभ्राज, मार्तण्ड मंडल और कामदुध लोक में पितरों का वास होता है। श्राद्ध करने वाला व्यक्ति जब खुद कामदुध पितृलोक में पहुंचता है, तो हजारों जन्मों के अपने माता-पिता, भाई, बहन और निकट संबंधियों से मिलता है।'
'ब्रह्मलोक से ऊपर सुमानस लोक में सोमप नाम से सनातन पितृ रहते हैं। ये ब्रह्माजी से भी श्रेष्ठ बताए जाते हैं। तर्पणकर्म निदेशिका में लिखा है कि मृत्यु के बाद भी जीव पृथ्वी से दूर दूसरे तल यानी अंतरिक्ष पर रहता है। पृथ्वी के चारों ओर आत्मीय सृष्टि है। यहां कोई भौतिक चीज नहीं पहुंचती। मृत्यु के बाद सबसे पहले जीव या आत्मा इसी तल पर जाता है।'
अश्विन मास के कृष्णपक्ष में ही पितृपक्ष होने के पीछे कारण है। ज्योतिष के अनुसार, इस महीने हमारी धरती, सूर्य और चंद्रमा के बेहद करीब होती है। कृष्ण पक्ष पितरों का एक दिन होता है और शुक्ल पक्ष उनकी रात।
ज्योतिष में यह भी माना जाता है कि चंद्रमा के ऊपरी भाग में पितृलोक है। वहां शुक्लपक्ष में सूर्य के दर्शन नहीं होते। पूरे शुक्लपक्ष में वहां रात रहती है। कृष्ण पक्ष में पूरे दिन सूरज दिखता और दिन रहता है, इसलिए पितृपक्ष को कृष्णपक्ष में माना गया है। पद्मपुराण में कहा गया है कि आदि सृष्टि के समय से पितरों का श्राद्ध शुरू हुआ। स्वधा शब्द के उच्चारण से पितरों के उद्देश्य से किया गया हुआ श्राद्ध-दान पितरों को संतुष्ट करता है।
पितरों से संपर्क कैसे किया जाता है?
मान्यता है कि पितृपक्ष (pitru paksha) में तर्पण की गई चीजें पितरों तक पहुंचती हैं। सवाल है कैसे और क्या पितरों से संपर्क किया जा सकता है?
मान्यता है कि दिवंगत आत्माओं से संपर्क करना मुश्किल काम नहीं है। इसके लिए या तो मंत्र शक्ति से आत्मा का आह्वान किया जाता है या हृदय में पूरी श्रद्धा के साथ पितृ को स्मरण करने से वे सूक्ष्म रूप में उपस्थित हो जाते हैं। जब हम पितरों को अन्न या जल से तृप्त करते हैं, तो सूर्य और चंद्रमा की नज़दीकी से दिवंगत आत्मा को ये सब कुछ तुरंत प्राप्त हो जाता है।
सभी धर्मों में माना जाता है कि दिवंगत आत्मा में अलौकिक शक्ति होती है। पितरों के नाम पर किए गए पुण्यकर्म आत्माओं तक पहुंचते हैं और उनकी निवृत्ति में सहायता करते हैं। भावनाएं मन प्रधान होती हैं और आत्माएं मानसिक सृष्टि पर रहती हैं।
अब कोई पूछ सकता है कि पितरों को अर्पित किया गया जल उन तक कैसे पहुंचता है? जल कई रूपों में बदल जाता है। पितरों को दिया गया जल पहले वायु रूप में बदलता है। फिर वायु रूप से आकाश रूप में। आकाश रूप से सूक्ष्म रूप में बदलता है और पितरों की तृप्ति करता है। पितरों को तर्पण सिर्फ उनके दूसरा जन्म लेने तक ही सीमित नहीं है। आपके किसी पूर्वज ने यदि दूसरे शरीर में जन्म ले लिया, तो तर्पण उनकी संतुष्टि और आध्यात्मिक उन्नति का सहायक बनता है। सरल शब्दों में तर्पण वास्तव में एक चक्र है, जो लगातार चलता रहता है।
प्रेतयोनि के 12 दिन
पितृलोक के स्वामी यमराज हैं। जलदान से यमराज संतुष्ट होते हैं, तो पितरों को भी सुख मिलता है। बशर्ते आत्मा पितृलोक तक पहुंच गई हो। ऐसी मान्यता है कि नश्वर शरीर छोड़ने के 12 दिन बाद तक आत्मा प्रेतयोनि में रहती है।
इस बारे में कई और जानकारियां मिलती हैं। मसलन, श्राद्ध करने वाला व्यक्ति अधिकतम तीन पीढ़ियों का ही श्राद्ध करता है। इसमें पिता, दादा और परदादा शामिल होते हैं। तर्पण के लिहाज से वसु को पिता, रुद्र को दादा और आदित्य यानी सूर्य को परदादा का स्वामी माना गया है। इन्हें चढ़ाया गया अन्न या जल सूक्ष्म रूप में पूर्वजों तक पहुंच जाता है। श्राद्धकर्ता से प्रसन्न होकर पूर्वज उसे आयु, बुद्धि, विद्या, धन और संतान का आशीर्वाद देते हैं।
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तर्पण के नियम (Rules of Tarpan)
- यह सूर्योदय से लेकर दोपहर 12 बजे तक ही होता है।
- मृत आत्माओं की मुक्ति के लिए नदियों के तट, पुष्कर, गया और हरिद्वार (Gaya and Haridwar) जैसे तीर्थों में तर्पण का विशेष महत्व है।
- तर्पण में चावल, जौ और काले तिल के साथ कुश का इस्तेमाल होता है।
मान्यता है कि कुश भगवान विष्णु के शरीर से प्राप्त होने के कारण पवित्र है। वहीं, चावल, जौ और तिल अन्नों में श्रेष्ठ माने जाते हैं। वेदों में बताए गए यज्ञों में इनकी ही आहुति दी जाती है। इसकी एक वजह इन अन्नों का जल तत्व प्रधान होना है।
अपने परिवार के दिवंगत लोगों, दोस्तों या रिश्तेदारों के तर्पण के पहले ऋषि तर्पण में मरीचि, अत्रि, आंगिरस और भृगु जैसे ऋषियों को जलदान किया जाता है। दिव्य मनुष्य या सप्त मुनि तर्पण में दिव्य मनुष्यों जैसे सनक, सनंदन, सनातन और कपिल आदि को तृप्त किया जाता है। दिव्य पितृ तर्पण में सोम, यम और अर्यमा आदि के प्रति कृतज्ञता जताई जाती है।
यमतर्पण में यम के 14 अवतारों को जल दिया जाता है। पितृ तर्पण में अपने पूर्वजों की संतुष्टि और प्रसन्नता के लिए जल और अन्न दान किया जाता है। इसके अलावा गुरु तर्पण, अबांधव या बांधव तर्पण, पुत्र रहित वंशज, दूसरे गोत्र के पुरुष और भीष्म तर्पण भी किया जाता है। देव, ऋषि और भीष्म तर्पण में चावल, दिव्य मनुष्य के तर्पण में जौ और अन्य तर्पणों में काले तिल का प्रयोग होता है।
पितृपक्ष (pitru paksha) कर्ज चुकाने का मौका
तर्पणकर्म सिर्फ साधारण व्यक्तियों तक सीमित नहीं। सनातन परंपराओं में देवताओं के पहले पितरों को संतुष्ट किया जाता है। वजह, पितृगण जल्दी प्रसन्न होते हैं। भक्तों पर प्रेम रखते हैं और उन्हें सुख देते हैं। पितर पर्वों के देवता हैं यानी हर पर्व पर पितरों का पूजन करना चाहिए। सूर्यदेव श्राद्ध के देवता माने जाते हैं।
वनवास के समय भगवान राम को जब अपने पिता दशरथ की मृत्यु की सूचना मिली तो उन्होंने चित्रकूट में मंदाकिनी के तट पर पिता का श्राद्ध और तर्पण किया था। भगवान कृष्ण ने महाभारत युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए अपने भांजे अभिमन्यु का तर्पण किया था। भीष्म ने भी अपने पिता शांतनु का तर्पण किया था। शास्त्रों की मान्यता है कि एक व्यक्ति के ऊपर तीन ऋण होते हैं, ऋषिऋण, देवऋण और पितृऋण। पितरों का ऋण चुकाने का पर्व ही पितृपक्ष है।
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