Cheteshwar Pujara : चेतेश्वर पुजारा, जिसके 53वीं गेंद पर खाता खोलने पर बजती थीं तालियां

 


Cheteshwar Pujara : ऑस्ट्रेलिया में क्यों खलेगी पुजारा की कमी?

चेतेश्वर पुजारा (Cheteshwar Pujara) ने भारतीय क्रिकेट के सभी फॉर्मेट्स से संन्यास ले लिया। uplive24.com पर जानिए क्यों अब किसी का पुजारा बन पाना मुश्किल है?

किसी क्रिकेटर से सवाल कीजिए कि क्रिकेट की बेस्ट फॉर्म कौन? जवाब आएगा, टेस्ट। हालांकि इसके बाद भी एक कड़वा सच यह है कि तमाम क्रिकेटर टी-20 के लिए टेस्ट छोड़ रहे हैं। उनकी प्राथमिकता में 20 ओवरों का खेल पहले है। इसकी वजह है पैसा। कम वक्त में ज्यादा पैसा और चौकों-छक्कों के शोर से मिलने वाली शोहरत किसे अच्छी नहीं लगती?

आपको एक नाम तो तुरंत ही मिल जाएगा - चेतेश्वर पुजारा (Cheteshwar Pujara)। आज जब सब कोई टी-20 स्पेशलिस्ट कहलाना पसंद कर रहा है - जब सारे बैटर्स चाह रहे हैं कि उनका स्ट्राइक रेट आसमान के पार चला जाए - तब पुजारा किसी मद्धिम ताजी हवा के झोंके से थे। मौजूदा दौर में वर्ल्ड क्रिकेट में पुजारा उन कुछ खिलाड़ियों में शामिल रहे, जिनके नाम के साथ जुड़ा है टेस्ट स्पेशलिस्ट। 

ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अपना बेस्ट देने वाले इस खिलाड़ी की अंतरराष्ट्रीय कहानी भी इसी टीम के विरुद्ध बेंगलुरु में शुरू हुई थी। 

चौथी पारी में 200 से ज्यादा रनों के लक्ष्य का पीछा करने उतरी भारतीय टीम ने तीसरे ओवर में ही सिर्फ 17 रन पर वीरेंद्र सहवाग का विकेट गंवा दिया। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उस सीरीज के पहले मैच में भी चौथी पारी में भारत को लगभग इतना ही बड़ा लक्ष्य मिला था, जिसे हासिल करने में 9 विकेट गिर गए थे। तब वीवीएस लक्ष्मण ने एक छोर संभालकर क्लासिक 73 रन की नाबाद पारी खेल कर टीम को जीत दिलाई थी। लेकिन दूसरे टेस्ट से लक्ष्मण चोट की वजह से बाहर थे।

ऐसे में टीम को बचाने का जिम्मा क्रिकेट बुक के शॉट्स को फॉलो करने वाले युवा चेतेश्वर पुजारा (Cheteshwar Pujara) ने उठाया। पुजारा पहली पारी में प्रभाव नहीं छोड़ सके थे। इसके बावजूद कप्तान एमएस धोनी ने राहुल द्रविड़ को बैटिंग क्रम में नीचे करके उन्हें तीसरे क्रम पर भेजा। डोमेस्टिक क्रिकेट में खूब वाहवाही बटोर चुके पुजारा ने उस दिन पहली बार दुनिया की वाहवाही बटोरी। उन्होंने 72 रनों की पारी खेलकर विश्व क्रिकेट में खूबसूरत दस्तक दी। हालांकि भारतीय टीम का अहम हिस्सा वह तब बने, जब करीब दो साल बाद अपने चौथे टेस्ट मैच में शतक जड़ा और उसी साल दो महीने बाद अहमदाबाद में इंग्लैंड के खिलाफ अपने करियर का पहला दोहरा शतक मारा।

Babar and Virat : कहां विराट और कहां जिम्बाबर! पाकिस्तान का खिलाड़ी ही बोला – अब बस भी कर दो!

डिफेंस तोड़ना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन था

पुजारा ने आहिस्ते-आहिस्ते अपने रक्षात्मक कौशल से विपक्षी टीमों को यह विश्वास दिला दिया कि राहुल द्रविड़ की ही माफिक उनका डिफेंस तोड़ना भी बहुत मुश्किल है। इधर द्रविड़ का करियर ढलान पर था और उधर टीम इंडिया की 'नई दीवार' की उपमा के साथ पुजारा का सूरज चढ़ रहा था। 

द्रविड़ के बाद पुजारा ने बल्लेबाजी में तीसरा क्रम अपने नाम करवा लिया। उन्होंने भारत के लिए 103 टेस्ट मैच खेले और 7,195 रन बनाए। उनका औसत 43.61 रहा, जिसमें 19 शतक और 35 अर्धशतक शामिल हैं।

इस दौरान पुजारा (Cheteshwar Pujara) ने कई क्लासिक पारियां खेलीं। एडिलेड में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 123 रन हों या फिर जोहानिसबर्ग में डेल स्टेन और कंपनी की आग उगलती गेंदों के विरुद्ध 153 रनों की पारी, सभी ने खूब वाहवाही बटोरी। 

कुछ पारियां ऐसी भी रहीं, जिसमें उन्होंने कोई मील का पत्थर तो हासिल नहीं किया, लेकिन अपनी मानसिक मजबूती, स्किल और इस खेल के प्रति समर्पण की वह मुकम्मल तस्वीर बनाई, जिसे आने वाले समय में युवा क्रिकेटर्स शोध के विषय के तौर पर अपनाएंगे।

धीमे मगर सुस्त नहीं

टीम इंडिया 2018 में साउथ अफ्रीका में थी और जोहानिसबर्ग में तीन टेस्ट मैचों की सीरीज में सफाए से बचने के लिए मैदान में उतरी थी। लेकिन, वांडरर्स की मुश्किल पिच पर जिस तेजी से 10 ओवर के भीतर ही भारत ने अपने दोनों ओपनर गंवा दिए, उससे लगा नहीं कि टीम वापसी कर सकेगी। लेकिन, पुजारा की क्रीज पर मौजूदगी उस वक्त दर्शकों को अलग ही आनंद दे रही थी। तीसरे ओवर में ही क्रीज पर आ चुके पुजारा पारी के 20 ओवर पूरे हो जाने के बावजूद अपना खाता नहीं खोल सके थे। 

जब 53वीं गेंद पर उन्होंने अपना खाता खोला, तो दर्शकों ने तंज में उनके लिए तालियां बजाईं, लेकिन इस बल्लेबाज ने खुले दिल से उनकी तालियों को स्वीकार किया और अभिवादन किया। पुजारा की उस धीमी पारी की चर्चा हर जगह थी। 

पुजारा उस पारी में 179 गेंद पर 50 रन की पारी खेलकर आउट हुए। तब उनके धीमे खेल की बहुतों ने आलोचना की, लेकिन उनकी पारी के इर्द-गिर्द ही इस टेस्ट मैच में टीम इंडिया की जीत की कहानी लिखी गई।

एक ऐसी ही बेमिसाल पारी पुजारा ने साल 2021 में इंग्लैंड में खेली थी। क्रिकेट में कहते हैं कि आपकी मानसिक मजबूती की असली परीक्षा तब होती है, जब आपके बल्ले से रन नहीं निकल रहे होते। बुरे दौर में बल्लेबाज हर गेंद इस डर के साथ खेलता है कि कहीं बल्ले का किनारा न लग जाए या गेंद पैड पर न टकरा जाए। पुजारा भी कुछ-कुछ ऐसी ही मनस्थिति से गुजर रहे थे। पिछले कुछ समय से उनके बल्ले से रन नहीं निकल रहे थे। स्थिति यह हो चुकी थी कि टीम में उनकी पोजिशन को लेकर सवाल उठने लगे थे।  

Mohammed Siraj : थोड़ा रोनाल्डो और ज्यादा विराट, ऐसे बने मोहम्मद सिराज

यहां पुजारा ने एक बार फिर मानसिक दृढ़ता के उच्चतम स्तर को दिखाते हुए 91 रन की पारी खेल डाली। सीरीज के दूसरे टेस्ट में पुजारा ने अपना खाता खोलने के लिए 35 गेंद ली थीं, जबकि उनकी पूरी पारी 206 गेंद पर 45 रन की रही। इस पारी के बाद यह कहा जाने लगा कि पुजारा रन बनाना भूल चुके हैं। लेकिन, अगले ही टेस्ट में उन्होंने अपने आलोचकों को एक बार फिर निशब्द कर दिया। 

टेस्ट क्रिकेट में 'आर्ट ऑफ लिविंग' की जब भी बात होगी, जब भी स्पेशलिस्ट की बात होगी, तो वहां चेतेश्वर पुजारा का जिक्र जरूर आएगा। बदलते क्रिकेट में यह बात तय नजर आ रही है कि टेस्ट स्पेशलिस्ट का तमगा हासिल करने वाले पुजारा शायद आखिरी बल्लेबाज रहेंगे। 

Comments

Popular posts from this blog

Act of War : जब ये शब्द बन जाते हैं युद्ध का ऐलान

Constitution : पाकिस्तान का संविधान बनाने वाला बाद में कैसे पछताया

Pahalgam attack : भारत की स्ट्राइक से डरे पाकिस्तान ने दी सफाई