Shri Krishna Janmashtami : दो दिन क्यों मनाते हैं श्रीकृष्ण जन्माष्टमी?
krishna janmashtami 2025 : श्रीकृष्ण के इन संदेशों के साथ मनाएं जन्माष्टमी
ऐसा बहुत कम होता है जब गृहस्थ और संत, दोनों ही एक दिन Shri Krishna Janmashtami मनाएं - लेकिन ऐसा क्यों होता है? भगवान एक, भक्ति एक, फिर जन्म दो दिन क्यों, जानिए uplive24.com पर।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (Shri Krishna Janmashtami) को लेकर तैयारियां जोरों पर हैं। पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 15 अगस्त 2025 को रात 11:49 बजे आरंभ होकर 16 अगस्त की रात 9:34 बजे समाप्त होगी। उदया तिथि के अनुसार, मुख्य जन्माष्टमी 16 अगस्त को मनाई जाएगी। इस बार गृहस्थ और संन्यासी, दोनों ही 16 अगस्त को जन्मोत्सव मनाएंगे।
ऐसा बहुत कम होता है, वरना हर बार जन्माष्टमी (Shri Krishna Janmashtami) दो दिन मनाई जाती है - एक दिन गृहस्थ और दूसरे दिन संन्यासी - लेकिन ऐसा क्यों होता है?
गृहस्थ और संत अलग-अलग जन्माष्टमी क्यों मनाते हैं, इसे समझने के लिए हमें पहले कृष्ण जन्म की कहानी जाननी होगी। द्वापर युग में मथुरा में भोजवंशी राजा उग्रसेन का शासन था। लेकिन, उनका पुत्र कंस उन्हें बलपूर्वक गद्दी से उतारकर खुद राजा बन गया। कंस की एक बहन थीं देवकी, जिनका विवाह वसुदेव से हुआ था। विवाह के बाद कंस अपनी बहन देवकी को उनकी ससुराल पहुंचाने जा रहा था।
रास्ते में आकाशवाणी हुई, 'हे कंस, जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से ले जा रहा है, उसी में तेरा काल है। इसी के गर्भ से उत्पन्न आठवां बालक तेरा वध करेगा।' यह सुनकर कंस ने रथ रोक दिया और वसुदेव-देवकी को मारना चाहा। तब देवकी ने उससे विनयपूर्वक कहा, 'मेरे गर्भ से जो संतान होगी, उसे मैं तुम्हारे सामने ला दूंगी। हमको मार के क्या लाभ मिलेगा?' कंस ने देवकी की बात मान ली और वसुदेव-देवकी को कारागार में डाल दिया।
माया का जन्म और हुआ चमत्कार
जब देवकी को पहली संतान हुई, तो देवर्षि नारद ने कंस से कहा, 'आठवीं संतान तो कोई भी हो सकती है। पीछे से गिनती करो तो पहली संतान भी आठवीं हो जाएगी।' तब कंस ने तय कर लिया कि वह अपनी बहन की किसी संतान को नहीं छोड़ेगा।
वसुदेव-देवकी के एक-एक करके सात बच्चे हुए। कंस ने सभी को पैदा होते ही मार डाला। जब आठवां बच्चा होने वाला था, कारागार में पहरे कड़े कर दिए गए। ठीक इसी समय गोकुल में नंद की पत्नी यशोदा को भी बच्चा होने वाला था। एक ही समय पर देवकी को पुत्र और यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ। वह कन्या कुछ और नहीं सिर्फ माया थी। देवकी-वसुदेव परेशान थे कि अब कंस आएगा और उनकी आठवीं संतान को भी मार डालेगा।
लेकिन, तभी जेल की कोठरी में अचानक प्रकाश फैल गया। वसुदेव-देवकी के सामने शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किए चतुर्भुज भगवान प्रकट हुए। भगवान ने कहा, 'तुम मुझे इसी समय अपने मित्र नंद के घर वृंदावन ले चलो और उनके वहां जो कन्या जन्मी है, उसे लाकर कंस को सौंप दो।'
वसुदेव की बेड़ियां खुल गईं,पहरेदार सो गए और जेल के दरवाजे अपने आप खुल गए।
तुरंत ही वसुदेव ने नवजात शिशु को सूप में रखा और कारागृह से निकल पड़े। वह यमुना को पार कर नंदजी के घर पहुंचे। वहां उन्होंने शिशु को यशोदा के साथ सुला दिया और वहां से कन्या को लेकर मथुरा आ गए। कुछ ही देर में कंस को सूचना मिली कि देवकी को आठवां बच्चा हुआ है तो वह बंदीगृह पहुंचा। वहां उसने देवकी के हाथ से नवजात कन्या को छीनकर पृथ्वी पर पटक देना चाहा, लेकिन वह उसके हाथ से छूटकर आकाश में उड़ गई।
कन्या ने कहा, 'अरे मूर्ख, मुझे मारने से क्या होगा? तुझे मारने वाला तो वृंदावन में जा पहुंचा है। वह जल्द ही तुझे तेरे पापों का दंड देगा।' सुबह गोकुलवासियों और साधु-संतों को इस बात का पता चला कि भगवान का जन्म हो चुका है, तब सभी ने मिलकर गोकुल में भगवान का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया।
56 Bhog : भगवान को 56 भोग क्यों लगते हैं? जानिए इसकी पौराणिक कथा
स्मार्त और वैष्णव क्या हैं?
सनातन धर्म में कई तरह के मतों को मानने वाले हैं। इन अनुयायियों को उनकी भक्ति, विश्वास और पूजा विधि के हिसाब से वैष्णव, शैव, शाक्त, स्मार्त और वैदिक के रूप में जाना जाता है। वैष्णव वे हैं, जो भगवान विष्णु को ही सबसे बड़ा देव मानते हैं। शैव शिव को ही परम सत्ता मानते हैं। वहीं, शाक्त, देवी को परम शक्ति मानते हैं। स्मार्त वे हैं, जो परमेश्वर के विभिन्न रूपों को एक ही समान मानते हैं और सभी देवी-देवताओं की समान रूप से पूजा करते हैं।
गृहस्थ भी स्मार्त ही हैं, क्योंकि वे भी सभी देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। भगवान कृष्ण को वैष्णव और स्मार्त समान रूप से मानते हैं, लेकिन जन्माष्टमी मनाने को लेकर दोनों अलग-अलग दिन का चुनाव करते हैं। इसका रहस्य भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की कहानी में छिपा है।
इसलिए दो दिन जन्मोत्सव (Shri Krishna Janmashtami)
भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद की अष्टमी तिथि को रोहणी नक्षत्र में, आठवें मुहूर्त में रात्रि के 12 बजे, यानी शून्यकाल में हुआ था।
भगवान ने जब जन्म लिया, तब परिस्थितियां बहुत विकट थीं। कंस का अत्याचार चरम पर था। जनता चाहती थी कि कंस के अत्याचारों का अंत हो। इसके लिए सभी भगवान के अवतार की प्रतीक्षा कर रहे थे, लेकिन यह डर भी था कि कहीं कंस आठवीं संतान को भी ना मार डाले।
ऐसे में जिस दिन कृष्ण का जन्म होना था, स्मार्त यानी गृहस्थ लोगों ने व्रत रखा और भगवान से ही भगवान की रक्षा की कामना की। इसके बाद मध्य रात्रि में जन्म भगवान ने जन्म ले लिया, तभी उन्होंने भोजन किया। इसलिए स्मार्त लोग कृष्ण जन्माष्टमी (Shri Krishna Janmashtami) उसी दिन मनाते हैं, जिस दिन रात्रि में अष्टमी होती है।
वहीं, वैष्णव यानी संत समाज कंस के अत्याचारों के कारण गोकुल और अन्य स्थानों पर जाकर रह रहा था। भगवान कृष्ण के जन्म के बाद वह रात में ही गोकुल पहुंच गए, लेकिन इसकी जानकारी गोकुलवासियों और अन्य संत समाज को सुबह हुई।
जब पता चला कि भगवान सकुशल हैं तो सभी वैष्णवों और गोकुलवासियों ने भगवान का प्राकट्योत्सव (Shri Krishna Janmashtami) मनाया। आज भी यही परंपरा कायम है। सूर्य उदय के समय जब अष्टमी तिथि होती है, उस दिन वैष्णव जन्माष्टमी मनाते हैं।
सीधी तरह से समझें तो भगवान का जन्म आधी रात को हुआ था। इस समय से पहले से ही गृहस्थ उनका जन्मदिन मनाते हैं। वहीं भगवान के आधी रात को प्रकट होने के बाद अगले दिन वैष्णव उनका जन्मोत्सव (Shri Krishna Janmashtami) मनाते हैं।
Comments
Post a Comment