US-Russia : बस एक बटन दूर था अमेरिका और रूस में परमाणु युद्ध
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अमेरिका और रूस (US-Russia) के बीच तनाव एक बार फिर खतरनाक मोड़ पर है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने रूस के पूर्व राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव के बयान के जवाब में दो nuclear submarines को 'उचित क्षेत्रों' में तैनात करने का आदेश दे दिया है।
ट्रंप (Trump) ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म Truth Social पर लिखा कि उन्होंने यह फैसला एहतियातन लिया है, क्योंकि ऐसे बयान अनचाहे और खतरनाक नतीजों की ओर ले जा सकते हैं।
ट्रंप की यह प्रतिक्रिया उस वक्त आई जब मेदवेदेव ने अमेरिका को सीधा ललकारते हुए कहा कि रूस अपने रास्ते पर चलता रहेगा, और ट्रंप को चेतावनी दी कि वह रूस के साथ ultimatum game न खेलें। मेदवेदेव ने लिखा, 'अमेरिका को याद रखना चाहिए कि रूस कोई इजरायल या ईरान नहीं है। हर नया अल्टीमेटम युद्ध की ओर एक और कदम है।'
ऐसे हालात में uplive24.com पर जानिए उस रात के बारे में, जब ये दोनों देश परमाणु युद्ध के बिल्कुल करीब पहुंच गए थे।
वह रात जब गलती से परमाणु हमले का अलार्म बजा और सिर्फ एक आदमी ने कहा - रुको!
26 सितंबर 1983 की रात थी। सोवियत संघ के एक सैन्य निगरानी केंद्र में लेफ्टिनेंट कर्नल स्टानिस्लाव पेट्रोव (Stanislav Petrov) ड्यूटी पर थे। तभी सिस्टम ने संकेत दिया कि अमेरिका ने रूस की ओर एक Intercontinental Ballistic Missile दाग दी है। अलार्म गूंजने लगा। और फिर एक नहीं, पांच मिसाइलों के लॉन्च की चेतावनी मिलने लगी।
हर कोई समझ रहा था कि अमेरिका ने हमला शुरू कर दिया है। और इसकी वजह भी थी। पिछले तीन-चार साल से अमेरिका लगातार रूस (US-Russia) को चिढ़ाने वाली कार्रवाई कर रहा था। नाटो (NATO) ने पश्चिमी यूरोप में न्यूक्लियर मिसाइलें तैनात कर दी थीं, जहां से सोवियत संघ के अहम ठिकानों को केवल 10 मिनट के भीतर निशाना बनाया जा सकता था।
इसके अलावा, माइंड गेम भी शुरू कर दिया था वॉशिंगटन ने। बाल्टिक और ब्लैक सी से अमेरिकी बॉम्बर उड़ान भरते। उनका मुंह होता सोवियत संघ की ओर। जहां से संघ की सीमा शुरू होती, उसके ठीक पहले विमान मुड़ जाते। रडार पर बैठे रूसी कर्मचारी अमेरिकियों का यह खेल देखकर चिढ़ जाते।
US-Russia तनाव का चरम, जिसमें 269 निर्दोष मारे गए
इसी चक्कर में एक सितंबर, 1983 को बड़ी गफलत हो गई। कोरियन एयरलाइंस का विमान फ्लाइट 007 न्यू यॉर्क से सिओल के लिए जा रहा था। रास्ते में कुछ तकनीकी खराबी आई और क्रू मेंबर्स से रास्ता पढ़ने में चूक हो गई। तय रूट के बजाय विमान घुस गया प्रतिबंधित रूसी इलाके में।
मास्को को लगा कि फिर अमेरिकियों ने अपना जासूसी विमान भेज दिया है। उसने एयर टू एयर मिसाइल दाग दी और विमान में सवार सभी 269 लोगों की मौत हो गई। उस विमान में एक अमेरिकी सांसद भी मौजूद थे (Korean Air Lines Flight 007)। ऐसे में पश्चिम के साथ सोवियत संघ के रिश्ते बिल्कुल ही गर्त में चले गए।
इस घटना के ठीक 25 दिन बाद यानी 26 सितंबर 1983 को अमेरिका की ओर से पांच परमाणु मिसाइलें छोड़ने का सिग्नल आ रहा था, तो रूसी कर्मचारियों को लगा कि यह कार्रवाई बदला लेने वाली है।
सोवियत रणनीति के मुताबिक अब retaliatory nuclear strike देना था, यानी तुरंत अमेरिका पर भी मिसाइलें छोड़नी थीं। बस कुछ मिनट का फैसला और फिर शायद पूरी दुनिया खाक हो जाती।
लेकिन पेट्रोव ने वही किया जो इतिहास में शायद ही किसी ने किया हो - उन्होंने आदेश देने से इनकार कर दिया।
उन्होंने सोचा, अगर अमेरिका हमला करता, तो सिर्फ पांच मिसाइल क्यों भेजेगा? वह सैकड़ों मिसाइलें एकसाथ दागेगा। उन्होंने ट्रेनिंग के दौरान यही सीखा था कि इस तरह के हमले ऑलआउट वाले होते हैं, मतलब दुश्मन पर ऐसा वार करो कि वह जवाब देने के काबिल न बचे।
लेकिन अमेरिका ने तो केवल 5 मिसाइलें दागी थीं। उसे पता था कि रूस भी जवाब देगा। तो अमेरिका इतना बड़ा रिस्क क्यों ले रहा था?
पेट्रोव को सिस्टम पर भरोसा नहीं हुआ। उन्होंने इसे false alarm करार दिया और अपने वरिष्ठों को इसकी सूचना नहीं दी।
कुछ देर बाद साफ हो गया कि पेट्रोव सही थे। यह एक satellite malfunction था। सूर्य की रोशनी बादलों पर इस तरह पड़ी थी कि कंप्यूटर सिस्टम ने उसे मिसाइल समझ लिया था।
अगर पेट्रोव उस रात आदेश जारी कर देते, तो सोवियत मिसाइलें भी अमेरिका की ओर रवाना हो चुकी होतीं, और फिर न अमेरिका होता, न रूस - और शायद न ही दुनिया वैसी होती जैसी आज है।
आज की दुनिया में सिर्फ मिसाइल नहीं, बयान भी हथियार बन चुके हैं। Nuclear submarine deployment कोई सामान्य सैन्य निर्णय नहीं है। यह एक स्पष्ट संकेत है, और एक चुनौती भी। जब एक ओर राष्ट्रपति ट्रंप रूस को दस दिन की अल्टीमेटम डेडलाइन दे रहे हैं, और दूसरी ओर मेदवेदेव nuclear rhetoric में उलझे हैं, तब दोनों देशों की सेनाएं हाई अलर्ट पर हैं।
क्या इन दोनों नेताओं में से कोई पेट्रोव जैसा धैर्य और विवेक दिखा पाएगा? क्या आज की दुनिया में false alarm या सोशल मीडिया की भड़काऊ पोस्ट से भी बड़ा युद्ध शुरू हो सकता है? US-Russia के सामने बहुत कुछ साबित करने की चुनौती है।
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