Takht-e-Rustam Stupa : बौद्ध मठ या रुस्तम की जगह, अफगानिस्तान के इस स्तूप का रहस्य क्या है?

 


अफगानिस्तान में स्थित तख्त-ए-रुस्तम स्तूप (Takht-e-Rustam Stupa) प्राचीन इतिहास और रहस्यों से भरा स्थल है। uplive24.com पर जानें इसके पीछे की कहानियां, रूस्तम से जुड़े कयास और अद्भुत रहस्य।

Takht-e-Rustam Stupa : कल्पना कीजिए, आप अफगानिस्तान के समंगान प्रांत की धूल भरी सड़कों पर चल रहे हैं। आसमान नीला, हवा में रेगिस्तानी गर्मी की चुभन, और अचानक एक पहाड़ी पर कुछ ऐसा दिखता है जो किसी पुरानी इंडियाना जोन्स फिल्म का सेट लगे। नीचे उतरते ही एक गहरा गड्ढा - आठ मीटर गहरा! और उसके बीच में एक विशालकाय स्तूप, जो पत्थर से तराशा गया है, जैसे कोई जादूगर ने जमीन को काटकर स्वर्ग का द्वार खोल दिया हो। 

यह है तख्त-ए-रुस्तम (Takht-e-Rustam Stupa), अफगानिस्तान का वह बौद्ध स्थल जो सदियों से इतिहासकारों, साहसी यात्रियों और किंवदंती प्रेमियों को मोह लेता है। लेकिन यह सिर्फ एक प्राचीन मठ नहीं, यह एक ऐसा रहस्य है जो बौद्ध भिक्षुओं की ध्यान-धारणा से लेकर फारसी महाकाव्यों के योद्धा-रोमांस तक फैला हुआ है। 

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Takht-e-Rustam Stupa के निर्माण की अनोखी कहानी

तीसरी-चौथी शताब्दी ईस्वी का समय लीजिए, जब अफगानिस्तान कुशानो-सासानी साम्राज्य का हिस्सा था। बौद्ध धर्म यहां चरम पर था, और समंगान (तब समंगान साम्राज्य) एक प्रमुख केंद्र। लेकिन तख्त-ए-रुस्तम (Takht-e-Rustam Stupa) के निर्माताओं ने सामान्य स्तूप नहीं बनाया, जो आमतौर पर ऊपर उठे हुए होते हैं - उन्होंने इसे भूमिगत तराशा! 

हाइबक शहर से महज दो किलोमीटर दूर, एक पहाड़ी के पत्थर को काटकर पांच गुफा-कक्ष बनाए गए, जिनमें दो पवित्र कक्ष हैं। एक कक्ष का गुंबद कमल-पत्तियों की नक्काशी से सजा है, जैसे कोई प्राचीन कलाकार ने स्वर्गीय फूलों को पत्थर पर उकेरा हो। ऊपर एक हर्मिका (स्तूप का ऊपरी हिस्सा) है, जहां कभी भगवान बुद्ध के अवशेष रखे जाते थे। 

आसपास की गुफाओं में भिक्षु ध्यान करते, और एक गहरी खाई - प्रक्रिया पथ - घुमावदार रास्ते से घिरी हुई, जहां भिक्षु घड़ी की दिशा में घूमते हुए प्रार्थना करते। यह जगह (Takht-e-Rustam Stupa) एक मठ-कॉम्प्लेक्स थी, जहां बौद्ध संस्कृति फल-फूल रही थी। लेकिन क्यों भूमिगत? यहां से शुरू होता है रहस्य का ताना-बाना!

क्यों छिपाया गया यह स्वर्गीय द्वार?

तख्त-ए-रुस्तम (Takht-e-Rustam Stupa) का सबसे बड़ा रहस्य यही है – यह स्तूप ऊपर क्यों नहीं, नीचे क्यों तराशा गया? इतिहासकारों की आंखें आज भी चुरचुरा रही हैं। एक थ्योरी कहती है कि यह छलावरण (कैमोफ्लाज) के लिए था – आक्रमणकारियों से बचाने को। 

कल्पना कीजिए, हूण या अरब घुसपैठिए आते, और यह भूमिगत मठ बस एक साधारण पहाड़ी लगता! दूसरी थ्योरी ज्यादा सांसारिक है - अफगानिस्तान के कठोर मौसम से बचने के लिए जहां गर्मियां आग की तरह होती हैं और सर्दियां बर्फीली। भूमिगत होने से तापमान स्थिर रहता, जैसे कोई प्राकृतिक एयर कंडीशनर। 

कुछ पुरातत्ववेत्ता मानते हैं कि यह इथियोपिया के मोनोलिथिक चर्चों जैसा है, लेकिन यहां का डिजाइन भारतीय और मध्य एशियाई प्रभावों का अनोखा मिश्रण है।

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अब आते हैं किंवदंतियों पर, जो इस जगह को और रहस्यमय बनाती हैं। 

मुस्लिम विजय के बाद सातवीं शताब्दी से, बौद्ध इतिहास भूल गया। तब यह स्थल फारसी महाकाव्य शाहनामा (फिरदौसी द्वारा रचित दसवीं शताब्दी का महाकाव्य) में घुस गया! यहां रुस्तम – फारसी संस्कृति का सुपरहीरो, एक अजेय योद्धा – का 'तख्त' (सिंहासन) माना गया (Takht-e-Rustam Stupa)। 

कथा कहती है कि रुस्तम समंगान राज्य पहुंचा, जहां राजा की बेटी ताहमिना से उसका विवाह हुआ। लेकिन ट्विस्ट! रुस्तम का घोड़ा रख्श चोरी हो गया था, और खोज में वह यहां ठहरा। क्या यह विवाह स्थल था? या रुस्तम-सोहराब की त्रासदी का प्रारंभिक दृश्य?

स्थानीय लोककथाएं जोड़ती हैं कि रुस्तम ने यहां (Takht-e-Rustam Stupa) अपनी दुल्हन को पाया, लेकिन बेटे सोहराब को अनजाने में मार डाला। इस कथा की वजह से आज भी यह स्तूप 'रुस्तम का तख्त' कहलाता है।

हालांकि, आधुनिक कयासबाजी और रोमांचक हैं। कुछ प्राचीन अंतरिक्ष यात्री सिद्धांतकार - एंशेंट एस्ट्रोनॉट थियोरिस्ट्स दावा करते हैं कि स्तूप वैदिक विमान से जुड़े हैं, जैसे कोई एलियन 'कॉस्मिक सीढ़ी'। एक गुफा में गजनवी सिक्कों का खजाना मिला, जो बताता है कि मध्यकाल में यहां लुटेरे भी आए। 

बामियान बुद्धों के विनाश के बाद, यह अफगानिस्तान का सबसे प्रभावशाली पूर्व-इस्लामी स्थल है। युद्धों और तालिबान शासनों में भी यह बचा रहा। 2021 में अफगान सरकार ने इसे नवीनीकृत किया, पर्यटक हॉल बनाया।

तख्त-ए-रुस्तम (Takht-e-Rustam Stupa) कोई म्यूजियम नहीं, जीवंत इतिहास है। मजार-ए-शरीफ से दो घंटे की ड्राइव, और आप भूमिगत खाई में उतरकर भिक्षुओं की तरह घूम सकते हैं। ऊपर चढ़ें, तो हर्मिका से हिंदूकुश की चोटियां नजर आती हैं, जैसे स्वर्ग का द्वार खुल रहा हो।

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