साहूकार की बेटी से करवा चौथ पर हुई थी कैसी भूल?
करवा चौथ का व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए सबसे पवित्र पर्व माना जाता है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखकर अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं। uplive24.com पर जानिए करवा चौथ व्रत कथा (Karwa Chauth Vrat Katha in Hindi) और करवा धोबिन की पौराणिक कहानी ।
Karwa Chauth Vrat Katha in Hindi : करवा चौथ का व्रत हर साल कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं सुबह स्नानादि नित्य कर्म करके व्रत का संकल्प लेती हैं और ईश्वर से अपने पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।
महिलाएं पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं और शाम को शुभ मुहूर्त में करवा चौथ पूजा विधि (Karwa Chauth Puja Vidhi) के अनुसार करवा माता, भगवान शिव, पार्वती, गणेश और कार्तिकेय की पूजा करती हैं। इसके बाद व्रत कथा (Karwa Chauth Vrat Katha in Hindi) सुनती हैं, क्योंकि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कोई भी व्रत बिना कथा के अधूरा माना जाता है।
Karwa Chauth : इस करवा चौथ बन रहा चंद्र-सूरज का दुर्लभ संयोग
यहां पढ़िए करवा चौथ की प्रमुख पौराणिक कथाएं (Karwa Chauth Vrat Katha in Hindi)
एक साहूकार के सात पुत्र और एक पुत्री थी। एक बार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को सेठानी सहित उसकी सातों बहुएं और बेटी ने भी करवा चौथ का व्रत रखा।
रात के समय जब साहूकार के सभी बेटे भोजन करने बैठे, तो उन्होंने अपनी बहन से भी कहा, 'तुम भी भोजन कर लो।'
इस पर बहन ने उत्तर दिया, 'अभी चांद नहीं निकला है, चांद को अर्घ्य देने के बाद ही भोजन करूंगी।'
भाइयों ने अपनी बहन को भूख से व्याकुल देखा तो उन्हें दया आ गई। वे नगर के बाहर गए और एक पेड़ पर चढ़कर अग्नि जला दी। आग की रोशनी देखकर उन्होंने कहा, 'बहन, देखो! चांद निकल आया है।'
साहूकार की बेटी ने अपनी भाभियों से कहा, 'देखो, चांद निकल आया है, चलो अर्घ्य दे दें।'
भाभियों ने चेताया, 'बहन, अभी चांद नहीं निकला, ये तुम्हारे भाई अग्नि जलाकर उसका प्रकाश दिखा रहे हैं।'
लेकिन लड़की ने भाभियों की बात नहीं मानी और भाइयों द्वारा दिखाए गए झूठे चांद को अर्घ्य देकर भोजन कर लिया।
इस प्रकार व्रत भंग होने के कारण भगवान गणेश उस पर अप्रसन्न हो गए। परिणामस्वरूप उसके पति को गंभीर बीमारी घेर ली और घर का सारा धन उसकी चिकित्सा में समाप्त हो गया।
बाद में साहूकार की बेटी को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने भगवान गणेश से क्षमा मांगी और पुनः पूरे विधि-विधान से चतुर्थी व्रत (Chaturthi Vrat) रखा। उसने सभी ब्राह्मणों का आदर-सत्कार किया और आशीर्वाद लिया।
उसकी सच्ची भक्ति देखकर गणेश जी प्रसन्न हुए और उसके पति को जीवनदान दिया। वे दोनों पुनः सुखी और समृद्ध जीवन जीने लगे।
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पतिव्रता करवा धोबिन की कथा (Karwa Chauth Vrat Katha in Hindi)
पुराणों के अनुसार करवा नाम की एक पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के किनारे के गांव में रहती थी। उसका पति बूढ़ा और निर्बल था।
एक दिन जब वह नदी किनारे कपड़े धो रहा था, तभी अचानक एक मगरमच्छ आया और उसके पैर अपने दांतों में दबाकर यमलोक की ओर ले जाने लगा। भयभीत होकर वह 'करवा... करवा...' पुकारने लगा।
पति की पुकार सुनकर करवा वहां पहुंची और बिना देर किए कच्चे धागे से मगरमच्छ को बांध दिया। फिर वह उसे लेकर सीधे यमराज के द्वार पहुंची और बोली,
'हे भगवन! इस मगर ने मेरे पति को पकड़ लिया है, कृपया इसे इसके अपराध के दंड स्वरूप नरक भेज दीजिए।'
यमराज बोले, 'मगर की आयु अभी शेष है, मैं इसे यमलोक नहीं भेज सकता।'
करवा ने दृढ़ स्वर में कहा, 'यदि आपने मेरे पति की रक्षा नहीं की, तो मैं आपको श्राप देकर नष्ट कर दूंगी।'
करवा के साहस और पतिव्रता देखकर यमराज डर गए। उन्होंने मगर को यमपुरी भेज दिया और करवा के पति को दीर्घायु होने का वरदान दे दिया।
तभी से कार्तिक कृष्ण चतुर्थी (Kartik Krishna Chaturthi) को करवा चौथ का व्रत रखने की परंपरा प्रारंभ हुई, जो आज भी विवाहित महिलाएं पूरे श्रद्धा और भक्ति भाव से करती हैं।
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देवी पार्वती और करवा चौथ की कथा (Karwa Chauth Vrat Katha in Hindi)
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह व्रत सबसे पहले देवी पार्वती (Goddess Parvati) ने भगवान शिव के लिए रखा था। इसी व्रत के प्रभाव से उन्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति हुई थी। तभी से सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुखी दांपत्य जीवन के लिए यह व्रत रखती हैं।
एक अन्य कथा के अनुसार, एक बार देवताओं और राक्षसों के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया। राक्षसों की विजय होती दिखी तो ब्रह्मा देव ने देवताओं की पत्नियों से करवा चौथ व्रत रखने को कहा। उन्होंने कार्तिक कृष्ण चतुर्थी के दिन व्रत रखा और उनके पुण्य से देवताओं को विजय प्राप्त हुई।
कहा जाता है कि महाभारत काल में द्रौपदी ने भी पांडवों के कष्ट दूर करने के लिए करवा चौथ का व्रत रखा था।
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