Sawan : सावन पर कजरी सुनते काशी विश्वनाथ
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सावन (Sawan) में काशी विश्वनाथ मंदिर में बाबा को रोज सुनाई जाती है कजरी, चढ़ाया जाता है बनारसी पान। जानिए इस अद्भुत परंपरा और भक्तिभाव से भरे व्यंजनों की खास कहानी।
द्वादश ज्योतिर्लिंगों में विशिष्ट स्थान रखने वाले श्री काशी विश्वनाथ (Sri Kashi Vishwanath) मंदिर में वर्ष भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, लेकिन सावन (Sawan) का महीना आते ही यहां भक्ति की बयार कुछ अलग ही रंग में बहने लगती है। इस पावन मास में बाबा विश्वनाथ (Baba Vishwanath) के दरबार में सिर्फ दर्शन-पूजन ही नहीं होता, बल्कि उन्हें रोज कजरी (Kajri) गीत सुनाया जाता है, जो एक अनोखी और प्राचीन परंपरा का हिस्सा है।
कजरी (Kajri) उत्तर भारत, विशेष रूप से मिर्जापुर और बनारस (Varanasi) की लोक-गायन परंपरा है, जिसे महिलाएं सावन (Sawan) में झूले पर झूलते हुए गाती हैं। लेकिन, काशी (Kashi) में यह परंपरा अद्भुत रूप ले लेती है। यहां बाबा विश्वनाथ को हर सुबह मंगला आरती से पहले विशेष कजरी गीतों से जगाया जाता है, और रात्रि शयन आरती में गीतों से सुलाया जाता है।
ऐसा माना जाता है कि सावन (Sawan) में लोकगीतों के जरिए बाबा को मनाने से वे शीघ्र प्रसन्न होते हैं और भक्तों पर विशेष कृपा करते हैं।
सावन (Sawan) में बाबा को सुनाई जाने वाली कजरी के बोल कुछ यूं हैं,
अरे कौन गुण बाय शिव गइले लुभाय।
बेल के पतइया में कौन गुण बाय।।
पूड़ी मिठाई तोहे मनही न भावे।
भांग धतूरा में कौन गुण बाय, शिव गइले लुभाय।।
हाथी और घोड़ा शिव के मनही न भावे।
बूढ़वा बैलवा में कौन गुण बाय।।
महल अटारी शिव मनही न भावे।
टुटही मड़हिया में कौन गुण बाय, शिव गइले लुभाय।।
यह गीत बाबा की सादगी और सरलता का गुणगान करते हुए कहता है कि उन्हें महलों और घोड़ों से नहीं, बल्कि बेलपत्र, भांग, और साधारण बैल प्रिय हैं।
सावन (Sawan) की परंपरा केवल गीतों तक सीमित नहीं रहती। बाबा विश्वनाथ को बनारस (Banaras) के स्वाद भी उतने ही प्रिय हैं जितनी भक्ति। बनारसी पान (Banarasi Paan), विशेष रूप से मघई उन्हें रोज अर्पित किया जाता है। इसे मंगला आरती में चढ़ाकर बाद में प्रसाद रूप में भक्तों को दिया जाता है।
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इसके अलावा बाबा को बनारसी ठंडई (Thandai) का भी भोग लगाया जाता है, जो बीते 70 वर्षों से एक ही दुकान से मंदिर में नियमित रूप से भेजी जाती है। दुकान के संचालक स्वयं अर्चकों को ठंडई सौंपते हैं ताकि सप्तऋषि आरती से पहले यह बाबा के चरणों में अर्पित की जा सके।
गर्मियों में बाबा के भोग में गोलगप्पा और टमाटर चाट भी शामिल होती है, जो ढूंढी राज मार्ग की विश्वनाथ चाट भंडार से आती है। सर्दियों में चूड़ा-मटर का भी स्वाद बाबा लेते हैं।
बाबा विश्वनाथ बनारस की माटी में ही नहीं, उसके स्वाद और सुर में भी रचे-बसे हैं। फक्कड़पन, भक्ति, लोकगीत और व्यंजनों की यह सजीव परंपरा उन्हें न सिर्फ देवता बनाती है, बल्कि एक सजीव सांस्कृतिक केंद्र भी।
सावन (Sawan), कजरी और काशी विश्वनाथ की यह अद्भुत त्रयी श्रद्धा और परंपरा का ऐसा संगम है, जो हर साल न केवल बनारस को, बल्कि पूरी काशी नगरी को भक्ति में रंग देता है।
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