बद्रीनाथ के कपाट बंद करते समय क्यों स्त्री वेश धारण करते हैं रावल?

बद्रीनाथ मंदिर के कपाट बंद (Badrinath Temple kapat bandh) होने की परंपरा धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। रावल द्वारा स्त्री वेश धारण कर माता लक्ष्मी के चल विग्रह की स्थापना, उद्धव और कुबेर का पांडुकेश्वर प्रस्थान जैसी अनोखी परंपराएं इसे और भी विशेष बनाती हैं। uplive24.com पर अनोखी परंपरा जानिए।

डॉ. बृजेश सती

उत्तराखंड में स्थित बद्रीनाथ मंदिर धार्मिक श्रद्धा और परंपरा का अद्भुत उदाहरण है। हर वर्ष विजयदशमी (Vijayadashami) के दिन मंदिर के कपाट बंद करने की तिथि तय (Badrinath Temple kapat bandh) होती है और शीतकाल के दौरान यह अनोखी परंपरा निभाई जाती है। इस साल 2025 में बद्रीनाथ मंदिर के कपाट 25 नवंबर को बंद किए जाएंगे। इस परंपरा के तहत मंदिर परिसर में वैदिक पंचांग और ग्रह गोचर देखकर मुख्य पुजारी अमरनाथ नंबूदरी द्वारा कपाट बंद होने की तिथि घोषित की गई। 

कपाट बंद (Badrinath Temple kapat bandh) होने की प्रक्रिया 5 दिन पहले शुरू होती है। कपाट बंद होने के अगले दिन यानी 26 नवंबर को उद्धव और कुबेर के चल विग्रह शीतकालीन पूजा स्थल पांडुकेश्वर और आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी शीतकालीन पूजा स्थल ज्योतिर्मठ के नृसिंह मंदिर के लिए प्रस्थान करती है।

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मंदिर के कपाट बंद की परंपरा (Badrinath Temple kapat bandh)

बद्रीनाथ मंदिर के कपाट बंद (Badrinath Temple kapat bandh) का दिन विजयादशमी के पर्व पर बद्रीनाथ मंदिर परिसर में तय किया जाता है। इस दिन मंदिर परिसर में मुख्य पुजारी रावल, नायब रावल, बद्रीनाथ मंदिर के धर्माधिकारी और वेदपाठियों की उपस्थिति में वैदिक पंचांग, ग्रह नक्षत्र देखकर कपाट बंद करने की तिथि और मुहूर्त निश्चित किया जाता है। 

मंदिर के कपाट मार्ग-शीर्ष माह के प्रथम सप्ताह में बंद किए जाने का प्रावधान है।

ऐसी पौराणिक मान्यता है कि मार्ग शीर्ष माह में नर यानि रावल द्वारा भगवान की दो पूजा आवश्यक है। इसके बाद जो भी उचित मुहूर्त निकलता है, उस तिथि को कपाट बंद (Badrinath Temple kapat bandh) कर दिए जाते हैं। यहां भगवान की पूजा का चक्र निर्धारित है। छह माह नर और छह माह देवर्षि नारद द्वारा श्री हरि की पूजा की जाती है।

उल्लेखनीय है कि कपाट बंद होने की तिथि से पांच दिन पूर्व पारंपरिक प्रक्रियाएं शुरू हो जाती हैं। इसके तहत सर्वप्रथम मंदिर परिसर में स्थित गणेश मंदिर के कपाट बंद किए जाते हैं। अगले दिन आदि केदारेश्वर और शंकराचार्य मंदिर के कपाट बंद होते हैं। अगले चरण में तीसरे दिन खड़क पुस्तिका पूजन के बाद वेद ऋचाओं का पाठ बंद किया जाता है। चौथे दिन मां लक्ष्मीजी की पूजा और कड़ाई भोग लगाया जाता है।

मुख्य पुजारी रावल करते हैं स्त्री वेश धारण

पांचवें दिन मंदिर परिसर में भावुक दृश्य होता है। कपाट बंद होने से कुछ पहले मंदिर के मुख्य पुजारी रावल स्त्री वेश धारण कर लक्ष्मी मंदिर के गर्भगृह से माता लक्ष्मी के चल विग्रह को बद्रीनाथ मंदिर के गर्भगृह में स्थापित करते हैं।

नर पूजा के छह माह के दौरान अंतिम दिन यह परंपरा मंदिर के मुख्य पुजारी द्वारा निभाई जाती है।

दरअसल रावल के स्त्री रूप धारण करने के पीछे मुख्य वजह यह है कि हिंदू परंपरा के अनुसार कोई पुरुष पर-स्त्री को स्पर्श नहीं कर सकता है। इसलिए मंदिर के पुजारी, लक्ष्मीजी की सखी पार्वती का रूप धारण कर लक्ष्मी मंदिर से चल विग्रह को बद्रीनाथ मंदिर के गर्भ गृह में नारायण के सानिध्य में स्थापित करते हैं। इस परंपरा को संपन्न करने के बाद मंदिर के कपाट शीतकाल के लिए बंद (Badrinath Temple kapat bandh) कर दिए जाते हैं।

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उद्धव और कुबेर स्थापित होते हैं पांडुकेश्वर 

बद्रीनाथ मंदिर के गर्भगृह से उद्धव और कुबेर के चल विग्रह को बाहर लाया जाता है। कुबेर की डोली रात्रि विश्राम के लिए बामणी गांव आती है, जबकि उद्धव और आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी कपाट बंद होने के अगले दिन मंदिर परिसर से और कुबेर की डोली बामणी गांव से पाण्डुकेश्वर के लिए प्रस्थान करती है।

पाण्डुकेश्वर स्थित योगध्यान मंदिर के गर्भगृह में कुबेर व उद्धव के चल विग्रहों को स्थापित किया जाता है, जबकि शंकराचार्य की गद्दी नृसिंह मंदिर लायी जाती है। कपाट खुलने तक गद्दी को शंकराचार्य मंदिर में रखा जाता है। कपाट बंद होने के साथ ही मंदिर का खजाना और गरूड़ जोशीमठ स्थित नृसिंह मंदिर आ जाते हैं।

कपाट बंद होने के दूसरे दिन प्रस्थान

मंदिर के कपाट बंद होने के दूसरे दिन उद्धव, कुबेर और शंकराचार्य की गद्दी पाण्डुकेश्वर प्रस्थान करती है। मुख्य अर्चक सहित मंदिर की परंपरा से जुड़े सभी लोग रात्रि विश्राम बदरी पुरी में ही करते हैं। तीन अन्य धाम गंगोत्री, यमुनोत्री और केदारनाथ मंदिर के कपाट बंद होने के बाद मां गंगा और यमुना की भोग मूर्ति मार्कण्डेय और खरसाली आती है। केदारनाथ के पंच मुखी विग्रह का रात्रि प्रवास गौरीकुंड में होता है।

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भैय्या दूज को बंद होंगे केदारनाथ मंदिर के कपाट

इस यात्रा काल में चारों धामों के कपाट खुलने की प्रक्रिया 30 अप्रैल से प्रारंभ हुई थी। अक्षय तृतीया के दिन यमुनोत्री और गंगोत्री मंदिर के कपाट दर्शनार्थ खुले थे। इसके बाद 2 मई को केदारनाथ मंदिर और 4 मई को बदरीनाथ मंदिर के कपाट ग्रीष्मकाल के लिए खुले थे। 

अब चारों धामों के कपाट बंद होने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। इसके तहत सबसे पहले गंगोत्री मंदिर गोवर्धन पूजा के दिन 22 अक्टूबर को, यमुनोत्री मंदिर और केदारनाथ मंदिर के कपाट 23 अक्टूबर को भैय्या दूज पर बंद होंगे।

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