Black Monday : ट्रंप के टैरिफ ने याद दिलाया शेयर बाजार का वह काला सोमवार

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ट्रंप के टैरिफ वॉर (Trump Tariff) ने दुनिया को मंदी (#TrumpRecession) के दहाने पर खड़ा कर दिया है। निवेशकों को Black Monday याद आ रहा है।

क्या आपने कभी ऐसा दिन देखा है, जब बाज़ार यूं ताश के पत्तों की तरह बिखर जाए? जब निवेशकों की आंखों के सामने उनकी कमाई मिट्टी हो जाए और किसी देश के नेता के एक फैसले से पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था डगमगा जाए? ठीक ऐसा ही हुआ है डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ (Liberation Day Tariffs) के बाद।

सोमवार की सुबह जैसे ही सूरज निकला, एशिया के शेयर बाजारों (Share Markets) में हाहाकार मच गया। जापान से लेकर ताइवान, दक्षिण कोरिया, भारत और चीन तक हर जगह एक जैसी बेचैनी थी। सेंसेक्स (Sensex) लगभग चार हजार अंक लुढ़क गया, निफ्टी (Nifty) हजार अंक से ज्यादा टूटा और करोड़ों निवेशक स्तब्ध रह गए।

लेकिन अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जिनके एक फैसले ने यह भूचाल पैदा किया, वह निश्चिंत हैं। वह कह रहे हैं, 'कभी-कभी इलाज के लिए कड़वी दवा लेनी ही पड़ती है। यह एक आर्थिक क्रांति है, और हम इसे जीतेंगे।'

पर क्या यह क्रांति वाकई उतनी खूबसूरत है, जितनी ट्रंप उसे बता रहे हैं? या यह एक नया 'ब्लैक मंडे' (Black Monday) लाने की आहट है?

क्या है ब्लैक मंडे (Black Monday)?

19 अक्टूबर 1987, सोमवार का दिन। शेयर बाजार (Share Market) सामान्य रूप से खुला, लेकिन जो हुआ वह इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो गया। Dow Jones Industrial Average (DJIA), जो अमेरिका का सबसे प्रमुख स्टॉक इंडेक्स है, उस दिन 22.6% टूट गया। यह अब तक की सबसे बड़ी एक-दिनी गिरावट थी। सिर्फ अमेरिका ही नहीं, पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था उस दिन कांप उठी।

लंदन का FTSE 100 इंडेक्स 25% गिरा। टोक्यो में निक्केई 13.2% टूटा। हांगकांग, सिडनी, फ्रैंकफर्ट, मेक्सिको सिटी, एम्स्टर्डम - हर जगह स्टॉक एक्सचेंज जैसे रोने लगे। कुछ बाजारों में तो ट्रेडिंग बंद करनी पड़ी।

ब्लैक मंडे या काला सोमवार (Black Monday) केवल एक आंकड़ा नहीं था, वह सच्चाई थी कि शेयर बाजार (Share Market) पर आज क्या दांव पर लगा है। उसने दुनिया को बाजार की ताकत दिखाई। उसने दिखाया कि कैसे हमारे सपने, हमारी हसरतें, हमारा जीवन - सब कुछ बाजार के आंकड़ों संग चढ़ता-उतरता है। यही वजह है कि जब भी बाजार तेजी से गिरते हैं, तो उस तारीख की याद ताजा हो जाती है।

अब क्यों डर है 'ब्लैक मंडे' (Black Monday) की वापसी का?

अब एक बार फिर वही डर लोगों की आंखों में तैरने लगा है। वजह है ट्रंप के टैरिफ (Trump Tariff), जिनका असर इतना व्यापक है कि एशिया से लेकर ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका तक बाजार (Share Market) एक ही सुर में नीचे जा रहे हैं।

जापान का निक्केई (Nikkei) 8% टूटा, ऑस्ट्रेलिया का ASX 200 छह प्रतिशत से अधिक गिरा। चीन में Shanghai Composite Index 6.7% नीचे गया, जबकि भारत में Sensex 3,939 अंक गिर गया। ऐसा लग रहा है जैसे पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था एक अज्ञात सुरंग में उतर रही हो। यह याद रखिए कि ये आंकड़े लगातार बदल रहे हैं। 

दूसरी ओर, ट्रंप इन सभी घटनाओं से बिल्कुल भी विचलित नहीं हैं। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, 'हमारे पास चीन, यूरोपीय संघ और अन्य देशों के साथ बड़े व्यापार घाटे हैं। केवल टैरिफ (Tariff) ही इसका समाधान हैं। ये टैरिफ अब अरबों डॉलर अमेरिका में ला रहे हैं। अमेरिका के लिए यह एक सुंदर चीज है!'

उनका मानना है कि ये टैरिफ (Tariff) दीर्घकालिक जीत दिलाएंगे, भले ही अल्पकालिक दर्द हो। लेकिन सवाल यह है कि जब यह दर्द करोड़ों निवेशकों के जीवन की बचत को निगल रहा हो, तब क्या यह जीत वाकई जरूरी है?

शेयर बाजार (Share Market) कोई जादू का खेल नहीं हैं। वे आम लोगों की उम्मीदें, मेहनत की कमाई और भविष्य की योजना का प्रतिबिंब होते हैं। जब बाजार गिरते हैं, तो केवल आंकड़े नहीं गिरते, गिरता है एक मध्यमवर्गीय आदमी का रिटायरमेंट फंड, एक युवा का स्टार्टअप सपना, एक गृहिणी की छोटी-सी बचत।

और जब कोई एक नेता अपने राजनीतिक लक्ष्यों के लिए टैरिफ (Tariff) की तलवार चलाता है, तो वह केवल व्यापार पर वार नहीं करता, वह पूरी व्यवस्था को संकट में डाल देता है।

इतिहास गवाह है कि जब-जब बाजार की अनदेखी की गई है, उसने करारा जवाब दिया है। Black Monday इसका सबसे बड़ा उदाहरण है और आज के हालात उस इतिहास को दोहराने की आशंका पैदा कर रहे हैं।

ट्रंप के टैरिफ से उपजा यह संकट सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि मानसिक है। जब भरोसे की नींव हिलती है, तो पूंजी का साम्राज्य भी डगमगाता है।

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