Turbojet train : जब जेट के इंजन लगाकर 'उड़ी' ट्रेन

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सोवियत रूस की टर्बोजेट SVL ट्रेन (Turbojet train) एक अनोखा प्रयोग थी, जिसमें ER22 रेलकार पर Yak-40 विमान के जेट इंजन लगाए गए। यह ट्रेन 250 किमी/घंटा से ऊपर की रफ्तार पर पहुंची, लेकिन ईंधन और सुरक्षा कारणों से इसे बंद कर दिया गया। जानिए इस प्रयोग की पूरी कहानी।

ट्रेन और जेट इंजन - दोनों दो अलग दुनिया के वासी। एक जमीन पर सरकती है, दूसरी आकाश में उड़ती है। लेकिन सोवियत रूस की धरती पर एक समय ऐसा भी आया, जब इन दोनों का मेल हुआ। यह मेल सिर्फ तकनीक का नहीं था, बल्कि कल्पना, प्रयोग और गति के जुनून का था। यह थी Turbojet Train - एक ऐसी ट्रेन जो रेलवे की पटरी पर जेट इंजन की ताकत के साथ दौड़ी।

1960 और 70 के दशक में जब अमेरिका और जापान तेज़ रफ्तार ट्रेनों पर ध्यान दे रहे थे, सोवियत संघ ने एक बिल्कुल अलग सोच अपनाई। उनका सवाल था - क्यों न रेल को उड़ान जैसी रफ्तार दी जाए? इसी सोच ने जन्म दिया SVL प्रोजेक्ट को। SVL का मतलब था - High-Speed Laboratory Railcar, और इसे सिर्फ प्रयोग के लिए बनाया गया था।

अमेरिका में पहले प्रयोग

अमेरिका में 1966 में इसी तरह का प्रयोग किया जा चुका था। M‑497 ब्लैक बीटल नामक Turbojet Train ने 296 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार रिकॉर्ड की थी। 40 किलोमीटर लंबे ट्रैक पर यह प्रयोग किया गया था।

अमेरिका के बाद ही रूस भी इस प्रयोग की तरफ बढ़ा। इसके लिए ER22 सीरीज की एक रेलकार को चुना गया, जो सामान्य रूप से इलेक्ट्रिक मल्टीपल यूनिट ट्रेनों का हिस्सा होती थी। लेकिन इस बार, ऊपर दो MiG-19 फाइटर जेट के टर्बोजेट इंजन लगाए गए। इस इंजन को केवल हवा में नहीं, अब जमीन पर भी अपनी ताकत दिखानी थी।

यह Turbojet train हल्की नहीं थी। इसका कुल वजन 54.4 टन था, जिसमें से 7.4 टन केवल ईंधन का था। लंबाई की बात करें तो यह ट्रेन (Turbojet train) 28 मीटर (लगभग 92 फीट) लंबी थी। जब इंजन चालू किए गए, तो पूरी ट्रेन पटरी पर इस तरह दौड़ी मानो कोई फाइटर जेट रनवे पर तेजी से टेकऑफ कर रहा हो।

इस प्रयोग का लक्ष्य सिर्फ गति पाना नहीं था, बल्कि सोवियत संघ के सपने में एक और परत जोड़ना था। योजना थी कि अगर यह प्रोटोटाइप सफल रहा, तो इसी तकनीक से यात्रियों को लेकर चलने वाली Turbojet train बनाई जाएगी, जो रूस के शहरों को नई रफ्तार से जोड़ेगी।

इस वजह से नहीं चल पाई Turbojet train 

लेकिन हकीकत में यह सपना ज्यादा दूर नहीं चल सका। सबसे बड़ी चुनौती थी अत्यधिक ईंधन की खपत। टर्बोजेट इंजन भारी मात्रा में ईंधन खपत करते थे, जो कि रेलवे जैसे बड़े नेटवर्क के लिए बेहद महंगा सौदा था। 

दूसरा बड़ा कारण था शोर और सुरक्षा संबंधी खतरे। जिस तरह से Turbojet train शोर करती थी, वह न केवल यात्रियों बल्कि ट्रैक के पास रहने वाले लोगों के लिए भी खतरनाक था।

इसके अलावा जेट इंजन की तेजी से उठने वाली गर्मी रेल पटरियों को भी नुकसान पहुंचा सकती थी। और अगर कोई तकनीकी गड़बड़ी हो जाती, तो पूरी ट्रेन और आसपास का इलाका भारी खतरे में आ जाता।

इन सभी कारणों से Turbojet train प्रोजेक्ट कभी व्यावसायिक स्तर तक नहीं पहुंच सका। लेकिन जो बात इसे खास बनाती है, वह है इसकी कल्पना की उड़ान। यह एक ऐसा प्रयोग था जो तकनीक की संभावनाओं की सीमाएं तोड़ना चाहता था।

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