Jyoteshwar Mahadev : यहां भगवान को घेरे हुए हैं 5 नंदी, इसके पीछे है खास वजह

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आदि गुरु शंकराचार्य ने जिस पेड़ के नीचे बैठकर ज्योति प्राप्त की, उसी के पास है ज्योतेश्वर महादेव मंदिर (Jyoteshwar Mahadev)। इसके महात्म्य और परंपरा के बारे में जानिए uplive24.com पर।

डॉ. बृजेश सती 

शिव मंदिरों (Shiv Mandir) में शिवलिंग के ठीक सामने उनके गण नंदी की मूर्ति स्थापित की जाती है। देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से दो - ओंकारेश्वर महादेव और काशी विश्वनाथ (Kashi Vishwanath) अपवाद हैं। यहां नंदी शिवलिंग के ठीक सामने न होकर बगल में स्थापित किए गए हैं।

अब बात करते हैं देश के ऐसे शिवालय (Shiv Mandir) की, जहां एक-दो नहीं] बल्कि पांच नंदी विराजमान हैं। ऐसा यह देश का एकमात्र शिव मंदिर है। यह शिवालय उत्तराखंड के ज्योतिर्मठ विकासखंड का ज्योतेश्वर महादेव (Jyoteshwar Mahadev) है। 

ज्योतेश्वर महादेव (Jyoteshwar Mahadev) मंदिर की स्थापना 5वीं सदी में भागवदपाद आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा की गई थी। ज्योतिर्मठ वह स्थान है , जहां दिग्विजय यात्रा के बाद आदि गुरु शंकराचार्य का आगमन हुआ। यहीं पर उन्होंने कल्पवृक्ष के नीचे बैठकर ज्ञान (ज्योति) प्राप्त किया। इसके चलते इस स्थान का नाम ज्योतिर्मठ हुआ और जो शिवलिंग उन्होंने स्थापित किया, वह ज्योतेश्वर महादेव (Jyoteshwar Mahadev) के नाम से विख्यात है। 

ज्योतेश्वर महादेव मंदिर (Jyoteshwar Mahadev) की विशेषता यह भी है कि इसके गर्भगृह में शिवलिंग के साथ नंदी भी विराजमान हैं। मंदिर में पांच नदियों की आकृति अलग-अलग है। तीन नंदी एक ही आकर के हैं। इन पर माला, गले में घंटी की आकृति उकेरी गई है। बाकी दो नंदी सामान्य हैं। काले पत्थरों को तराश कर नंदी की आकृति में उकेरा गया है। हालांकि मंदिर के गर्भगृह में स्थापित नंदी का आकार और रंग अलग है।

आइए जानते हैं, ज्योतेश्वर महादेव मंदिर (Jyoteshwar Mahadev) के पौराणिक महत्व और एक से अधिक नंदी के पीछे के रहस्य के बारे में। 

यह आदि गुरु शंकराचार्य जी की तपस्थली है। यहां कल्पवृक्ष के नीचे उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया। इस कारण इस नगर का नाम ज्योतिर्मठ पड़ा। उन्होंने अपने आराध्य भगवान शिव की पूजा अर्चना के लिए यहां जिस शिवलिंग की स्थापना की, उसका नाम ज्योतेश्वर महादेव रखा। शंकराचार्य पंचायतन पूजा के प्रवर्तक हैं। हमारा शरीर पांच भौतिक तत्वों से बना है, इसलिए पांच का अध्यात्म में विशेष महत्व है। - दंडी स्वामी मुकुंदानंद, ज्योतिर्मठ के प्रभारी

ज्योतिर्मठ के ज्योतेश्वर महादेव (Jyoteshwar Mahadev)

पैनखंडा क्षेत्र में शिव से जुड़े कई महत्वपूर्ण और पौराणिक शिवालय हैं। इन्हीं में एक प्राचीन और ऐतिहासिक महत्व का ज्योतेश्वर महादेव (Jyoteshwar Mahadev) का मंदिर भी है। 

मंदिर कल्पवृक्ष (शहतूत प्रजाति) के नीचे स्थित है। मंदिर के अंदर गर्भगृह में शिवलिंग है। वृक्ष के नीचे ही परिक्रमा पथ है।

वर्तमान ज्योतेश्वर महादेव (Jyoteshwar Mahadev) मंदिर श्री बदरीनाथ-श्री केदारनाथ मंदिर समिति के अधीन है। समिति के द्वारा ही यहां पर पूजा की व्यवस्था की जाती है। शिवालय के पुजारी स्थानीय उनियाल जाति के ब्राह्मण हैं।

शिवरात्रि के दिन यहां भव्य मेला लगता है। पूर्व में लोग स्थानीय उपज रामदाना, ओगल-फाफर आदि चढ़ाते थे। आधुनिकता के दौर में यह परंपरा समाप्ति की कगार पर है।

क्यों रहते हैं शिव के सामने नंदी?

इसके पीछे मुख्य वजह यह है कि नंदी भगवान शिव के परम भक्त होने के साथ ही उनके वाहन भी हैं। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि भगवान शिव ने नंदी को वरदान दिया कि जहां वह विराजमान होंगे, वहां नंदी भी रहेंगे। इसलिए शिवालयों में नंदी को शिवलिंग के सामने स्थापित किया जाता है। श्रद्धालु पहले नंदी के दर्शन करते हैं, उसके बाद शिव के। 

इसके अलावा कुछ और कारण भी हैं - नंदी भगवान शिव के प्रति अटूट भक्ति का प्रतीक हैं। उनको शिव मंदिर का द्वारपाल भी माना जाता है। 

अक्सर लोग मंदिर में दर्शन के बाद लौटते हुए नंदी के कान में कुछ कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि नंदी के जरिये मनोकामना भगवान शिव के दरबार में पहुंचाई जा सकती है।

दो नंदी वाला शिव मंदिर 

गुजरात में नर्मदा नदी के तट पर 'जुड़वा नंदी मंदिर' है। इस मंदिर में भगवान शिव दो रूपों में एक ही छत के नीचे विराजमान हैं और उनके सामने दो नंदी भी आमने-सामने स्थापित हैं। 

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