Vellore Revolt : क्या हुआ था वेल्लोर में, जिसे मानते हैं आजादी की पहली जंंग
uplive24.com पर जानिए 1806 के वेल्लोर विद्रोह (Vellore Revolt) की पूरी कहानी। कैसे धार्मिक अपमान और ड्रेस कोड ने भारत की आजादी की पहली सशस्त्र बगावत को जन्म दिया, और कैसे अंग्रेजों ने इसे बेरहमी से कुचला।
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भारत की आजादी की पहली लड़ाई 1857 के स्वाधीनता संग्राम को माना जाता है। यह बड़े स्तर पर आजादी की पहली कोशिश थी। इससे पहले भी अंग्रेजों से आजादी छीनने के प्रयास हो चुके थे, लेकिन वे इतिहास के पन्नों में कहीं खो से गए। इनमें सबसे खूंखार था 1806 का वेल्लोर विद्रोह (Vellore Revolt)। यह गुलामी के खिलाफ भारत की पहली जंग भी मानी जाती है।
1857 की तरह इस बगावत की वजह भी धार्मिक और सांस्कृतिक थी। ब्रिटिश हुकूमत ने भारतीय सिपाहियों के लिए एक ड्रेस कोड लागू किया। इसके मुताबिक, उन्हें किसी भी तरह के जातिसूचक प्रतीक दिखाने की अनुमति नहीं थी, जैसे कि हिंदुओं को टीका-तिलक लगाने और मुस्लिमों को दाढ़ी रखने की। साथ ही, मूंछों को भी एक पैमाइश के हिसाब से रखना था। इसका मकसद था, सेना को एक समान दिखाना।
जाहिर तौर पर ये काफी सीधे और सरल बदलाव थे। लेकिन, अंग्रेजों को भारतीय रीति रिवाजों का इल्म नहीं था। उन्हें नहीं पता था कि भारत में पोशाक सिर्फ पहनावे का मसला नहीं, बल्कि इससे जाति और धर्म की झलक मिलती है। टीका-तिलक, मूंछ और दाढ़ी जैसे जाति प्रतीकों से छेड़छाड़ हिंदुस्तान के रूढ़िवादी समाज में बहुत बड़ी बात थी।
Vellore Revolt की वजह बनी चमड़े वाली पगड़ी
फिर मामला बिगड़ा नई चमड़े वाली पगड़ी से, जो कुछ-कुछ यूरोपीय टोपियों से मिलती-जुलती थी। कहा जाने लगा कि ब्रिटिश हुकूमत हिंदुओं और मुस्लिमों को ईसाई बनाने की कोशिश कर रही है। जमीनी स्तर पर काम करने वाले कुछ ब्रिटिश कमांडिंग अफसर इन जोखिमों को जानते थे। जैसे कि हैदराबाद में पहले ही अफवाहें तैर रही थीं कि ईसाइयों को अपने चर्च को पवित्र करने के लिए 100 मूल निवासियों की बलि की जरूरत होती है।
ऐसे में हैदराबाद के कमांडिंग अफसर ने समझदारी दिखाई और नए ड्रेस कोड को लागू करने से मना कर दिया। लेकिन, वेल्लोर में इन नियमों को बड़ी सख्ती से लागू किया गया। जिन भी सिपाहियों ने विरोध किया, उन पर कोड़े बरसाए गए और उन्हें नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया।
ड्रेस कोड को अपनाने वाले सैनिकों की भारतीय लोग 'टोपी वाला' कहकर खिल्ली उड़ाने लगे कि उन्होंने फिरंगी सिक्कों के लिए अपने सम्मान का सौदा कर लिया। यह हिंदुस्तानी सिपाहियों के सम्मान पर चोट थी और उनके भीतर बगावत के बारूद सुलगने लगे।
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टीपू के बेटों का बदला
यह भी कहा जाता है कि भारतीय सिपाहियों को अंग्रेजों से युद्ध में पराजित टीपू सुल्तान के बेटों ने भी भड़काया। अंग्रेजों से जंग में टीपू की मौत हुई। टीपू के पूरे परिवार को अंग्रेजों ने 1799 में वेल्लोर किले में कैद कर किया था। टीपू की पत्नियों, बेटों और नौकरों को ईस्ट इंडिया कंपनी से पेंशन मिलती थी। 9 जुलाई 1806 को टीपू सुल्तान की एक बेटी की शादी होनी थी। अंग्रेजों के खिलाफ बगावत (Vellore Revolt) की योजना बनाने वाले लोग शादी में शामिल होने के बहाने किले में एकजुट हुए।
10 जुलाई की रात भारतीय सिपाहियों ने खेली खून की होली। सिपाहियों ने 14 अंग्रेज अफसरों और 115 सैनिकों को मार डाला। इनमें से अधिकतर अपनी बैरक में सो रहे थे। मारे गए लोगों में किले का कमांडर कर्नल सेंट जॉन फैनकोर्ट भी था।
विद्रोहियों ने किले को अपने कब्जे में ले लिया और उस पर मैसूर सल्तनत कर झंडा फहरा दिया। इस झंडे को बाजार के एक पारसी व्यापारी से खरीदा गया था। इसे इस बात का सबूत माना गया कि बगावत (Vellore Revolt) के शिल्पकार मैसूर की सत्ता से निर्वासित लोग यानी टीपू सुल्तान के उत्तराधिकारी ही थे और विद्रोहियों का मकसद था टीपू परिवार की सत्ता को बहाल करना।
अंग्रेजों ने भागकर अपनी जान
इस हमले में बचने वाले अंग्रेजों ने या तो मरने का नाटक किया या फिर गेस्ट हाउस में छिप गए। एक अफसर मदद लाने के लिए वेल्लोर से अर्कोट भागा। वहीं, विद्रोहियों ने किले पर कब्जा करने वाले असल मकसद को भुला दिया और लूटपाट में व्यस्त हो गए। इससे अंग्रेजों को वेल्लोर तक मदद पहुंचाने के लिए पर्याप्त समय मिल गया।
अंग्रेजों ने इस बगावत को लिया प्रतिशोध के तौर पर। अर्कोट से अंग्रेजों का एक दल मदद के लिए वेल्लोर निकला। इसकी अगुवाई की रॉबर्ट रोलो गिलेस्पी ने, जो उस वक्त अंग्रेजों का भारत में मौजूद सबसे काबिल अफसर था। गिलेस्पी 20 फौजियों की टुकड़ी लेकर आगे निकल गया। वेल्लोर किले के पास उसे करीब 60 बचे हुए अंग्रेज सैनिक मिले, जो प्राचीर के पास ही थे, लेकिन गोला-बारूद की पहुंच से दूर।
गिलेस्पी ने उनकी मदद से किले पर दोबारा कब्जा कर लिया और वहां मौजूद 100 से अधिक हिंदुस्तानी सिपाहियों को पकड़ लिया गया। बदले की आग में इस कदर जल रहे थे फिरंगी कि उन्होंने कई सैनिकों को तोप के सामने खड़ा करके उड़ा दिया, कइयों को फायरिंग दस्ते के सामने खड़ा करके गोलियों से भून दिया गया और बचे हुए लोगों को बाद में फांसी हुई। टीपू सुल्तान के खानदान वालों को कोलकाता भेज दिया गया।
Vellore Revolt से हैरान रह गए थे अंग्रेज
Vellore Revolt इतना तीव्र था कि इससे पूरा ब्रिटिश महकमा हैरान था। खुद गिलेस्पी ने माना कि अगर उसकी टुकड़ी को पहुंचने में पांच मिनट की भी देर हो जाती, तो अंग्रेज सबकुछ खो देते।
विद्रोह की खबर इंग्लैंड पहुंचने तक महीनों बीत चुके थे। जांच आयोग का गठन हुआ। विद्रोह में शामिल तीन मद्रास बटालियनों को भंग कर दिया गया। अपमानजनक ड्रेस नियमों के लिए जिम्मेदार वरिष्ठ ब्रिटिश अधिकारियों को इंग्लैंड वापस बुला लिया गया। ईस्ट इंडिया कंपनी ने उनके सफर के खर्च का भुगतान करने से भी मना कर दिया। 'नई पगड़ी' यानी गोल टोपी वाले ऑर्डर को भी रद्द कर दिया गया।
इंग्लैंड में मौजूद ब्रिटेन के आला अफसरों को आखिर तक यकीन नहीं हुआ कि भारतीय वेल्लोर विद्रोह (Vellore Revolt) जैसा कदम भी उठा सकते हैं।
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